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________________ २३८ स्थानाङ्गसूत्रम् संसार-सूत्र १३० - चउव्विहे संसारे पण्णत्ते, तं जहा — दव्वसंसारे, खेत्तसंसारे, कालसंसारे, भावसंसारे । संसार चार प्रकार का कहा गया है, जैसे— १. द्रव्य-संसार — जीवों और पुद्गलों का परिभ्रमण। २. क्षेत्र - संसार - जीवों और पुद्गलों के परिभ्रमण का क्षेत्र । ३. काल - संसार — उत्सर्पिणी आदि काल में होने वाला जीव - पुद्गल का परिभ्रमण । ४. भाव-संसार — औदयिक आदि भावों में जीवों का और वर्ण, रसादि में पुद्गलों का परिवर्तन (१३०)। दृष्टिवाद-सूत्र १३१ - चउव्विहे दिट्ठिवाए पण्णत्ते, तं जहा—परिकम्मं, सुत्ताई, पुव्वगए, अणुजोगे । दृष्टिवाद (द्वादशांगी श्रुत का बारहवां अंग ) चार प्रकार का कहा गया है, जैसे— १. परिकर्म — इसके पढ़ने से सूत्र आदि के ग्रहण की योग्यता प्राप्त होती है। २. सूत्र इसके पढ़ने से द्रव्य-पर्याय-विषयक ज्ञान प्राप्त होता है। ३. पूर्वगत — इसके अन्तर्गत चौदह पूर्वो का समावेश है । ४. अनुयोग — इसमें तीर्थंकरादि शलाका पुरुषों के चरित्र वर्णित हैं (१३१) । विवेचन — शास्त्रों में अन्यत्र दृष्टिवाद के पांच भेद बताये गये हैं । १. परिकर्म, २. सूत्र, ३. प्रथमानुयोग, ४ . पूर्वगत और ५. चूलिका । प्रकृत सूत्र में चतुर्थस्थान के अनुरोध से प्रारम्भ के चार भेद कहे गये हैं। परिकर्म में गणित सम्बन्धी करण- सूत्रों का वर्णन है तथा इसके पांच भेद कहे गये हैं – १. चन्द्रप्रज्ञप्ति, २. सूर्यप्रज्ञप्ति, ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ४. द्वीप - सागरप्रज्ञप्ति और ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति । इनमें चन्द्र-सूर्यादिसम्बन्धी विमान, आयु, परिवार, गमन आदि का वर्णन किया गया है।' दृष्टिवाद के दूसरे भेद सूत्र में ३६३ मिथ्यामतों का पूर्वपक्ष बता कर उनका निराकरण किया गया है। दृष्टिवाद के तीसरे भेद प्रथमानुयोग में ६३ शालका पुरुषों के चरित्रों का वर्णन किया गया है। दृष्टिवाद के चौथे भेद में चौदह पूर्वों का वर्णन है। उनके नाम और वर्ण्य विषय इस प्रकार हैं१. उत्पादपूर्व—–— इसमें प्रत्येक द्रव्य के उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य और उनके संयोगी धर्मों का वर्णन है। इसकी पद-संख्या एक करोड़ है। २. आग्रयणीयपूर्व — इसमें द्वादशाङ्ग में प्रधानभूत सात सौ सुनय, दुर्नय, पंचास्तिकाय, सप्त तत्त्व आदि का वर्णन है। इसकी पद संख्या छयानवे लाख है । ३. वीर्यानुवादपूर्व—— इसमें आत्मवीर्य, परवीर्य, कालवीर्य, तपोवीर्य, द्रव्यवीर्य, गुणवीर्य आदि अनेक प्रकार के वीर्यों का वर्णन है। इसकी पद संख्या सत्तर लाख है। ४. अस्ति नास्तिप्रवादपूर्व—— इसमें प्रत्येक द्रव्य के धर्मों का स्यादस्ति, स्यान्नास्ति आदि सप्त भंगों का प्रमाण और नय के आश्रित वर्णन है। इसकी पद संख्या साठ लाख है। ५. ज्ञान - प्रवादपूर्व इसमें ज्ञान के भेद-प्रभेदों का स्वरूप, संख्या, विषय और फलादि की अपेक्षा से
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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