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चतुर्थ स्थान प्रथम उद्देश
२. कोई पुरुष (दूसरों से) अभ्युत्थान करवाता है, किन्तु (स्वयं) अभ्युत्थान नहीं करता । ३. कोई पुरुष स्वयं भी अभ्युत्थान करता है और दूसरों से भी अभ्युत्थान करवाता है। ४. कोई पुरुष न स्वयं अभ्युत्थान करता है और न दूसरों से भी अभ्युत्थान करवाता है (१११) ।
विवेचन — प्रथम भंग में संविग्नपाक्षिक या लघुपर्याय वाला साधु गिना गया है, दूसरे भंग में गुरु, तीसरे भंग में वृषभादि और चौथे भंग में जिन - कल्पी आदि। आगे भी इसी प्रकार यथायोग्य उदाहरण स्वयं समझ लेना चाहिए ।
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११२ - [ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— वंदति णाममेगे णो वंदावेति, वंदावेति णामगे णो वंदति, एगे वंदति वि वंदावेति वि, एगे णो वंदति णो वंदावेति ] |
एवं सक्कारेइ, सम्माणेति पूएइ, वाएइ पडिपुच्छति पुच्छइ, वागरेति ।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे—
१. कोई पुरुष (गुरुजनादि की) वन्दना करता है, किन्तु (दूसरों से) वन्दना करवाता नहीं ।
२. कोई पुरुष (दूसरों से) वन्दना करवाता है, किन्तु (स्वयं) वन्दना नहीं करता ।
३. कोई पुरुष स्वयं भी वन्दना करता है और दूसरों से वन्दना करवाता है ।
४. कोई पुरुष न स्वयं वन्दना करता है और न दूसरों से वन्दना करवाता है (११२) ।
११३ [ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सक्कारेइ णाममेगे णो सक्कारावेइ, सक्करावे णाममेगे णो सक्कारेइ, एगे सक्कारेइ वि सक्कारावेइ वि, एगे णो सक्कारेइ णो सक्कारावेइ ] |
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे—
१. कोई पुरुष (गुरुजनादि का) सत्कार करता है, किन्तु (दूसरों से) सत्कार करवाता नहीं ।
२. कोई पुरुष दूसरों से सत्कार करवाता है, किन्तु स्वयं सत्कार नहीं करता ।
३. कोई पुरुष स्वयं भी सत्कार करता है और दूसरों से भी सत्कार करवाता है ।
४. कोई पुरुष न स्वयं सत्कार करता है और न दूसरों से सत्कार करवाता है (११३) ।
११४
[चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा
सम्माणेति णाममेगे णो सम्माणावेति, सम्माणावेति णाममेगे णो सम्माणेति, एगे सम्माणेति वि सम्माणावेति वि, एगे णो सम्माणेति णो सम्माणावेति ] |
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे—
१. कोई पुरुष (गुरुजनादि का) सन्मान करता है, किन्तु ( दूसरों से) सन्मान नहीं करवाता ।
२. कोई पुरुष दूसरों से सन्मान करवाता है, किन्तु स्वयं सन्मान नहीं करता ।
३. कोई पुरुष स्वयं भी सन्मान करता है और दूसरों से भी सन्मान करवाता है।
४. कोई पुरुष न स्वयं सन्मान करता है और न दूसरों से सन्मान करवाता है ( ११४) ।
११५ – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा पुएइ णाममेगे णो पूयावेति, पुयावेति णाममेगे
णो पूएइ, एगे पूएइ वि पूयावेति वि, एगे णो पूएइ णो पूयावेति ।