SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२३] (उड़ीसा) के शिलालेख में इस सम्बन्ध में विस्तार से वर्णन है। हिमवन्त स्थविरावली के अनुसार महामेघवाहन, भिक्षुराज खारवेल सम्राट ने कुमारी पर्वत पर एक श्रमण सम्मेलन का आयोजन किया था। प्रस्तुत सम्मेलन में महागिरि-परम्परा के बलिस्सह, बौद्धिलिङ्ग, देवाचार्य, धर्मसेनाचार्य, नक्षत्राचार्य, प्रभृति दो सौ जिनकल्पतुल्य उत्कृष्ट साधना करने वाले श्रमण तथा आर्य सुस्थित, आर्य सुप्रतिबद्ध, उमास्वाति, श्यामाचार्य, प्रभृति तीन सौ स्थविरकल्पी श्रमण थे। आर्या पोइणी प्रभृति ३०० साध्वियाँ, भिखुराय, चूर्णक, सेलक, प्रभृति ७०० श्रमणोपासक और पूर्णमित्रा प्रभृति ७०० उपासिकाएँ विद्यमान थीं। बलिस्सह, उमास्वाति, श्यामचार्य प्रभृति स्थविर श्रमणों ने सम्राट खारवेल की प्रार्थना को सन्मान देकर सुधर्मा-रचित द्वादशांगी का संकलन किया। उसे भोजपत्र, ताडपत्र, और वल्कल पर लिपिबद्ध कराकर आगम वाचना के ऐतिहासिक पृष्ठों में एक नवीन अध्याय जोड़ा। प्रस्तुत वाचना भुवनेश्वर के निकट कुमारगिरि पर्वत पर, जो वर्तमान में खण्डगिरि उदयगिरि पर्वत के नाम से विश्रुत है, वहाँ हुई थी, जहाँ पर अनेक जैन गुफाएं हैं जो कलिंग नरेश खारवेल महामेघवाहन के धार्मिक जीवन की परिचायिका हैं। इस सम्मेलन में आर्य सस्थित और सप्रतिबद्ध दोनों सहोदर भी उपस्थित थे। कलिंगाधिप भिक्षराज ने इन दोनों का विशेष सम्मान किया था। हिमवन्त थेरावली के अतिरिक्त अन्य किसी जैन ग्रन्थ में इस सम्बन्ध में उल्लेख नहीं है। खण्डगिरि और उदयगिरि में इस सम्बन्ध में जो विस्तृत लेख उत्कीर्ण है, उससे स्पष्ट परिज्ञात होता है कि उन्होंने आगमवाचना के लिए सम्मेलन किया था। तृतीय वाचना आगमों को संकलित करने का तृतीय प्रयास वीर-निर्वाण ८२७ से ८४० के मध्य हुआ। वीर-निर्वाण की नवमी शताब्दी में पुनः द्वादशवर्षीय दुष्काल से श्रुत-विनाश का भीषण आघात जैन शासन को लगा। श्रमण-जीवन की मर्यादा के अनुकूल आहार की प्राप्ति.अत्यन्त कठिन हो गयी। बहुत-से श्रुतसम्पन्न श्रमण काल के अंक में समा गये। सूत्रार्थग्रहण, परावर्तन के अभाव में श्रुत-सरिता सूखने लगी। अति विषम स्थिति थी। बहुत सारे मुनि सुदूर प्रदेशों में विहरण करने के लिए प्रस्थित हो चुके थे। दुष्काल की परिसमाप्ति के पश्चात् मथुरा में श्रमणसम्मेलन हुआ। प्रस्तुत सम्मेलन का नेतृत्व आचार्य स्कन्दिल ने संभाला ८ श्रुतसम्पन्न श्रमणों की उपस्थित से सम्मेलन में चार चाँद लग गये। प्रस्तुत सम्मेलन में मधुमित्र, १५० श्रमण उपस्थित थे। मधमित्र और स्कन्दिल ये दोनों आचार्य आचार्य सिंह के शिष्य थे। आचार्य गन्धहस्ती मधुमित्र के शिष्य थे। इनका वैदुष्य उत्कृष्ट था। अनेक विद्वान् श्रमणों के स्मृतपाठों के आधार पर आगम-श्रुत का संक स्कन्दिल की प्रेरणा से गन्धहस्ती ने ग्यारह अंगों का विवरण लिखा। मथुरा के ओसवाल वंशज सुश्रावक ओसालक ने गन्धहस्ती-विवरण सहित सूत्रों को ताडपत्र पर उट्टङ्कित करवा कर निर्ग्रन्थों को समर्पित किया। आचार्य गन्धहस्ती को ब्रह्मदीपिक शाखा में मुकुटमणि माना गया है। प्रभावकचरित के अनुसार आचार्य स्कन्दिल जैन शासन रूपी नन्दनवन में कल्पवृक्ष के समान हैं। समग्र श्रुतानुयोग को ५६. सुट्ठियसुपडिबुद्धे, अज्जे दुन्ने वि ते नमसामि । भिक्खुराय कलिंगाहिवेण सम्माणिए जितु ॥ -हिमवंत स्थविरावली, गा. १० ५७. (क) जर्नल आफ दी विहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसायटी, -भाग १३, पृ. ३३६ (ख) जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग १, पृ. ८२ (ग) जैनधर्म के प्रभावक आचार्य, -साध्वी संघमित्रा, पृ. १०-११ ५८. इत्थ दूसहदुब्भिक्खे दुवालसवारिसिए नियत्ते सयलसंघं मेलिअ आगमाणुओगो पवत्तिओ खंदिलायरियेण। -विविध तीर्थकल्प, पृ. १९
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy