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तृतीय स्थान – तृतीय उद्देश
१४९ श्रुतधर-सूत्र
३४४- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सुत्तधरे, अत्थधरे, तदुभयधरे।
श्रुतधर पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—सूत्रधर, अर्थधर और तदुभयधर (सूत्र और अर्थ दोनों के धारक) (३४४)। उपधि-सूत्र
३४५- कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा तओ वत्थाई धारित्तए वा परिहरित्तए वा, तं जहा जंगिए, भंगिए,खोमिए।
निर्ग्रन्थ साधुओं व निर्ग्रन्थिनी साध्वियों को तीन प्रकार के वस्त्र रखना और पहिनना कल्पता है—जाङ्गिक (ऊनी) भाङ्गिक (सन-निर्मित) और क्षौमिक (कपास-रूई-निर्मित) (३४५) ।
३४६- कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा तओ पायाइं धारित्तए वा परिहरित्तए वा, तं जहा लाउयपादे वा, दारुपादे वा मट्टियापादे वा।
निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियों को तीन प्रकार के पात्र धरना और उपयोग करना कल्पता है—अलाबु-(तुम्बा) पात्र, दारु-(काष्ठ-) पात्र और मृत्तिका-(मिट्टी का) पात्र (३४६)।
३४७ – तिहिं ठाणेहिं वत्थं धरेजा, तं जहा—हिरिपत्तियं, दुगुंछापत्तियं परीसहपत्तियं। निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियां तीन कारणों से वस्त्र धारण कर सकती हैं१. ह्रीप्रत्यय से (लज्जा-निवारण के लिए)। २. जुगुप्साप्रत्यय से (घृणा निवारण के लिए)।
३. परीषहप्रत्यय से (शीतादि परीषह निवारण के लिए) (३४७)। आत्म-रक्ष-सूत्र
३४८ – तओ आयरक्खा पण्णत्ता, तं जहा—धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएत्ता भवति, तुसिणीए वा सिया, उद्वित्ता वा आताए एगंतमंतमवक्कमेजा।
तीन प्रकार के आत्मरक्षक कहे गये हैं१. अकरणीय कार्य में प्रवृत्त व्यक्ति को धार्मिक प्रेरणा से प्रेरित करने वाला। २. प्रेरणा न देने की स्थिति में मौन-धारण करने वाला।
३. मौन और उपेक्षा न करने की स्थिति में वहाँ से उठकर एकान्त में चला जाने वाला (३४८)। विकट-दत्ति-सूत्र
३४९- णिग्गंथस्स णं गिलायमाणस्स कप्पंति तओ वियडदत्तीओ पडिग्गाहित्तते, तं जहा—उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा।