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________________ १३५ तृतीय स्थान-द्वितीय उद्देश णामेगे दुम्मणे भवति, असुइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २६५- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण सुआमीतेगे सुमणे भवति, ण सुआमीतेगे दुम्मणे भवति, ण सुआमीतेगे णोसुमणेणोदुम्मणे भवति। २६६– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण सुइस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण सुइस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण सुइस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं कोई पुरुष नहीं सोने पर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष नहीं सोने पर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं सोने पर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२६४)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष नहीं सोता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष नहीं सोता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं सोता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२६५)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष नहीं सोऊंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष नहीं सोऊंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'नहीं सोऊंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२६६)।] २६७ - [तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जुज्झिइत्ता णामेगे सुमणे भवति, जुज्झिइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, जुज्झिइत्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २६८-तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–जुज्झामीतेगे सुमणे भवति, जुज्झामीतेगे दुम्मणे भवति, जुज्झामीतेगे णोसुमणेणोदुम्मणे भवति। २६९ – तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जुझिस्सामीतेगे सुमणे भवति, जुझिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, जुझिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'युद्ध करके' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'युद्ध करके' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'युद्ध करके' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२६७) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'युद्ध करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'युद्ध करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'युद्ध करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२६८)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'युद्ध करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'युद्ध करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'युद्ध करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२६९)।] २७०-[तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा अजुज्झिइत्ता णामेगे सुमणे भवति, अजुज्झिइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अजुझिइत्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २७१- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–ण जुज्झामीतेगे सुमणे भवति, ण जुज्झामीतेगे दुम्मणे भवति, ण जुल्झामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २७२– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण जुझिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण जुझिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण जुज्झिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं कोई पुरुष 'युद्ध नहीं करके सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'युद्ध नहीं करके' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'युद्ध नहीं करके' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२७०)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'युद्ध नहीं करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'युद्ध
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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