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________________ तृतीय स्थान द्वितीय उद्देश १३३ है और न दुर्मनस्क होता है ( २४७) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष 'भोजन नहीं करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष ' भोजन नहीं करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष ' भोजन नहीं करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२४८)।] २४९ – [ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा — लभित्ता णामेगे सुमणे भवति, लभित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, लभित्ता णामेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति । २५०—– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, जहा— लभामीतेगे सुमणे भवति, लभामीतेगे दुम्मणे भवति, लभामीतेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति । २५१ - तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— लभिस्सामीतेगे सुमणे भवति, लभिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, लभिस्सामीतेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति । ] 1 [ पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष 'प्राप्त करके' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'प्राप्त करके ' दुर्मन होता है तथा कोई पुरुष ' प्राप्त करके' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२४९) । पुन: पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष ' प्राप्त करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'प्राप्त करता हूं' इसलिए दुर्मक होता है तथा कोई पुरुष 'प्राप्त करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२५०)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष 'प्राप्त करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'प्राप्त करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष ' प्राप्त करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२५१) ।] २५२ - [ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— अलभित्ता णामेगे सुमणे भवति, अलभित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अलभित्ता णामेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति । २५३ – तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण लभामीतेगे सुमणे भवति, ण लभामीतेगे दुम्मणे भवति, ण लभामीतेगे सुम-णोदुम्मणे भवति । २५४—– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण लभिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण लभिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण लभिस्सामीतेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति । ] [ पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष 'प्राप्त न करके' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'प्राप्त न करके ' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'प्राप्त न करके' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२५२) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष 'प्राप्त नहीं करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'प्राप्त नहीं करता हूं इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष ' प्राप्त नहीं करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२५३) । पुन: पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष ' प्राप्त नहीं करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष ‘प्राप्त नहीं करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष ' प्राप्त नहीं करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२५४)।] २५५ [ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—पिबित्ता णामेगे सुमणे भवति, पिबित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, पिबित्ता णामेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति । २५६ — तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—पिबामीतेगे सुमणे भवति, पिबामीतेगे दुम्मणे भवति, पिबामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २५७—– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा — पिबिस्सामीतेगे सुमणे भवति, पिबिस्सामीतेगे दुम्मणे
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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