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________________ ११८ स्थानाङ्गसूत्रम् विमान-सूत्र १३७- बंभलोग-लंतएसु णं कप्पेसु विमाणा तिवण्णा पण्णत्ता, तं जहा किण्णा, णीला, लोहिया। ब्रह्मलोक और लान्तक देवलोक में विमान तीन वर्ण वाले कहे गये हैं —कृष्ण, नील और लोहित (लाल) (१३७)। देव-सूत्र १३८- आणयपाणयारणच्चुतेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिजसरीरगा उक्कोसेणं तिण्णि रयणीओ उढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्पों में देवों के भवधारणीय शरीर उत्कृष्ट तीन रनि-प्रमाण ऊंचे कहे गये हैं (१३८)। प्रज्ञप्ति-सूत्र १३९- तओ पण्णत्तीओ कालेणं अहिजंति, तं जहा—चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, दीवसागरपण्णत्ती। तीन प्रज्ञप्तियां यथाकल (प्रथम और अंतिम पौरुषी में) पढ़ी जाती हैं चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति और द्वीपसागरप्रज्ञप्ति । (त्रिस्थानक होने से व्याख्याप्रज्ञप्ति तथा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की विवक्षा नहीं की गई है।) (१३९)। . ॥ तृतीय स्थान का प्रथम उद्देश समाप्त ॥
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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