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________________ स्थानाङ्गसूत्रम् (१२२)। १२३– बायरतेउकाइयाणं उक्कोसेणं तिण्णि राइंदियाई ठिती पण्णत्ता। १२४बायरवाउकाइयाणं उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता। ___बादर तेजस्कायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति तीन रात-दिन की कही गई है (१२३)। बादर वायुकायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति तीन हजार वर्ष की कही गई है (१२४) । योनिस्थिति-सूत्र १२५- अह भंते! सालीणं वीहीणं गोधूमाणं जवाणं जवजवाणं-एतेसि णं धण्णाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहित्ताणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति ? जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि संवच्छराइं। तेण परं जोणी पमिलायति। तेण परं जोणी पविद्धंसति। तेण परं जोणी विद्धंसति। तेण परं बीए अबीए भवति। तेण पर जोणीवोच्छेदे पण्णत्ते। हे भगवन् ! शालि, ब्रीहि, गेहूं, जौ और यवयव (जौ विशेष) इन धान्यों की कोठे में सुरक्षित रखने पर, पल्य (धान्य भरने के पात्र-विशेष) में सुरक्षित रखने पर, मचान और माले में डालकर, उनके द्वार-देश को ढक्कन ढक देने पर, उसे लीप देने पर, सर्व ओर से लीप देने पर, रेखादि से चिह्नित कर देने पर, मुद्रा (मोहर) लगा देने पर, अच्छी तरह बन्द रखने पर उनकी योनि (उत्पादक शक्ति) कितने काल तक रहती है.? ___(हे आयुष्मन्) जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन वर्ष तक उनकी योनि रहती है। तत्पश्चात् योनि म्लान हो जाती है, तत्पश्चात् योनि विध्वस्त हो जाती है, तत्पश्चात् योनि विनष्ट हो जाती है, तत्पश्चात् बीज अबीज हो जाता है, तत्पश्चात् योनि का विच्छेद हो जाता है अर्थात् वे बोने पर उगने योग्य नहीं रहते (१२५)। नरक-सूत्र १२६- दोच्चाए णं सक्करप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। १२७- तच्चाए णं वालुयप्पभाए पुढवीए जहण्णेणं णेरइयाणं तिण्णि सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता। १२८- पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए तिण्णि णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। १२९तिसु णं पुढवीसु णेरइयाणं उसिणवेयणा पण्णत्ता, तं जहा—पढमाए, दोच्चाए, तच्चाए। १३०– तिसु णं पुढवीसु णेरइया उसिणवेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा—पढमाए, दोच्चाए, तच्चाए। दूसरी शर्कराप्रभा पृथ्वी में नारकों की उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम कही गई है (१२६) । तीसरी बालुकाप्रभा पृथ्वी में नारकों की जघन्य स्थिति तीन सागरोपम कही गई है (१२७)। पांचवीं धूमप्रभा पृथ्वी में तीन लाख नारकावास कहे गये हैं (१२८)। आदि की तीन पृथिवियों में नारकों के उष्ण वेदना कही गई है (१२९) । प्रथम, द्वितीय और तृतीय इन तीन पृथिवियों में नारक जीव उष्ण वेदना का अनुभव करते रहते हैं (१३०)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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