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________________ १०० स्थानाङ्गसूत्रम् ठाणेहिं जीवा असुभदीहाउत्ताए कम्मं पगरेंति। तीन प्रकार से जीव अशुभ दीर्घायुष्य कर्म का बन्ध करते हैं—प्राणों का घात करने से, मृषावाद बोलने से और तथारूप श्रमण माहन की अवहेलना, निन्दा, अवज्ञा, गर्दा और अपमान कर कोई अमनोज्ञ तथा अप्रीतिकर अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य का प्रतिलाभ करने से। इन तीन प्रकारों से जीव अशुभ दीर्घ आयुष्य कर्म का बन्ध करते हैं (१९)। २०- तिहिं ठाणेहिं जीवा सुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहाणो पाणे अतिवातित्ता भवइ, णो मुसं वदित्ता भवइ, तहारूवं समणं वा माहणं वा वंदित्ता णमंसित्ता सक्कारित्ता सम्माणित्ता कल्लाणं मंगलं-देवतं चेतितं पज्जुवासेत्ता मणुण्णेणं पीतिकारएणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता भवइ–इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं जीवा सुहदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेति। तीन प्रकार से जीव शुभ दीर्घायुष्य कर्म का बन्ध करते हैं—प्राणों का घात न करने से, मृषावाद न बोलने से और तथारूप श्रमण माहन को वन्दन-नमस्कार कर, उनका सत्कार-सम्मान कर, कल्याण कर, मंगल देवरूप तथा चैत्यरूप मानकर उनकी पर्युपासना कर उन्हें मनोज्ञ एवं प्रीतिकर अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य आहार का प्रतिलाभ करने से। तीन प्रकारों से जीव शुभ दीर्घायुष्य कर्म का बन्ध करते हैं (२०)। गुप्ति-अगुप्ति सूत्र ___२१– तओ गुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—मणगुत्ती, वइगुत्ती, कायगुत्ती। २२– संजयमणुस्साणं तओ गुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—मणगुत्ती, वइगुत्ती, कायगुत्ती। २३– तओ अगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—मणअगुत्ती, वइअगुत्ती, कायअगुत्ती। एवं–णेरइयाणं जाव थणियकुमाराणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं असंजतमणुस्साणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं। गुप्ति तीन प्रकार की कही गई है—मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति (२१)। संयत मनुष्य के तीनों गुप्तियां कही गई हैं—मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति (२२) । अगुप्ति तीन प्रकार की कही गई है—मन-अगुप्ति, वचनअगुप्ति और काय-अगुप्ति । इस प्रकार नारकों से लेकर यावत् स्तनितकुमारों के, पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकों के, असंयत मनुष्यों के, वान-व्यन्तर देवों के, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के तीनों ही अगुप्तियां कही गई हैं, (मन, वचन, काय के नियन्त्रण को गुप्ति और नियन्त्रण न रखने को अगुप्ति कहते हैं) (२३)। दण्ड-सूत्र २४- तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा—मणदंडे, वइदंडे, कायदंडे। २५– हेरइयाणं तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा मणदंडे, वइदंडे, कायदंडे। विगलिंदियवजं जाव वेमाणियाणं। दण्ड तीन प्रकार के कहे गये हैं—मनोदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड (२४)। नारकों में तीन दण्ड कहे गये हैं—मनोदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड। इसी प्रकार विकलेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वैमानिक-पर्यन्त सभी दण्डकों के तीनों ही दण्ड कहे गये हैं। (योगों की दुष्ट प्रवृत्ति को दण्ड कहते हैं) (२५)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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