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________________ ९८ स्थानाङ्गसूत्रम् देव अपने ही शरीर से बनाये हुए विभिन्न रूपों से परिचारणा करते हैं। परिचार का अर्थ मैथुन-सेवन है (९)। २. कुछ देव अन्य देवों तथा अन्य देवों की देवियों का वार-वार आलिंगन करके परिचारणा नहीं करते, किन्तु अपनी देवियों का आलिंगन कर-कर के परिचारणा करते हैं, तथा अपने ही शरीर से बनाये हुए विभिन्न रूपों से परिचारणा करते हैं। ३. कुछ देव अन्य देवों तथा अन्य देवों की देवियों से आलिंगन कर-कर परिचारणा नहीं करते, अपनी देवियों का भी आलिंगन कर-करके परिचारणा नहीं करते। केवल अपने ही शरीर से बनाये हुए विभिन्न रूपों से परिचारणा करते हैं (९)। मैथुन-प्रकार सूत्र १०- तिविहे मेहुणे पण्णत्ते, तं जहा—दिव्वे, माणुस्सए, तिरिक्खजोणिए। ११- तओ मेहुणं गच्छंति, तं जहा—देवा, मणुस्सा, तिरिक्खजोणिया। १२ – तओ मेहुणं सेवंति, तं जहा—इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा। ____ मैथुन तीन प्रकार का कहा गया है—दिव्य, मानुष्य और तिर्यग्-योनिक (१०)। तीन प्रकार के जीव मैथुन करते हैं—देव, मनुष्य और तिर्यंच (११)। तीन प्रकार के जीव मैथुन का सेवन करते हैं—स्त्री, पुरुष और नपुंसक (१२)। योग-सूत्र १३– तिविहे जोगे पण्णत्ते, तं जहा—मणजोगे, वइजोगे कायजोगे। एवं—णेरइयाणं विगलिंदियवजाणं जाव वेमाणियाणं। १४–तिविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा—मणपओगे, वइपओगे कायपओगे। जहा जोगो विगलिंदियवजाणं जाव तहा पओगोवि। ___योग तीन प्रकार का कहा गया है—मनोयोग, वचनयोग और काययोग। इसी प्रकार विकलेन्द्रियों (एकेन्द्रियों से लेकर चतुरिन्द्रियों तक के जीवों) को छोड़कर वैमानिक देवों तक के सभी दण्डकों में तीन-तीन योग होते हैं (१३)। प्रयोग तीन प्रकार का कहा गया है—मनःप्रयोग, वचनप्रयोग और कायप्रयोग। जैसा योग का वर्णन क्रिया, उसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़ कर शेष सभी दण्डकों में तीनों ही प्रयोग जानना चाहिए (१४)। करण-सूत्र १५–तिविहे करणे पण्णत्ते, तं जहा—मणकरणे, वइकरणे, कायकरणे, एवं विगलिंदियवजं जाव वेमाणियाणं। १६-तिविहे करणे पण्णत्ते, तं जहा आरंभकरणे, संरंभकरणे, समारंभकरणे। णिरंतरं जाव वेमाणियाणं। करण तीन प्रकार का कहा गया है—मन:करण, वचन-करण और काय-करण। इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर शेष सभी दण्डकों में तीनों ही करण होते हैं (१५)। पुनः करण तीन प्रकार का कहा गया है—आरम्भकरण, संरम्भकरण और समारम्भकरण। ये तीनों ही करण वैमानिकपर्यन्त सभी दण्डकों में पाये जाते हैं (१६)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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