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________________ ८८ स्थानाङ्गसूत्रम् तं जहा—वेहाणसे चेव, गिद्धपटे चेव। ४१४- दो मरणाई समणेण भगवया महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्वं वण्णियाइं णिच्चं कित्तियाइं णिच्चं बुइयाइं णिच्वं पसत्थाई णिच्चं अब्भणुण्णायाइं भवंति, तं जहा—पाओवगमणे चेव, भत्तपच्चक्खाणे चेव। ४१५– पाओवगमणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—णीहारिमे चेव, अणीहारिमे चेव। णियमं अपडिकम्मे। ४१६- भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—णीहारिमे चेव, अणीहारिमे चेव। णियमं सपडिकम्मे। श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए दो प्रकार के मरण कभी भी वर्णित, कीर्तित, उक्त, प्रशंसित और अभ्यनुज्ञात नहीं किये हैं—वलन्मरण और वशार्तमरण (४११)। इसी प्रकार निदानमरण और तद्भवमरण, गिरिपतनमरण और तरुपतनमरण, जल-प्रवेशमरण और अग्नि-प्रवेशमरण, विष-भक्षणमरण और शस्त्रावपाटनमरण (४१२)। ये दो-दो प्रकार के मरण श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए श्रमण भगवान् महावीर ने कभी भी वर्णित, कीर्तित, उक्त, प्रशंसित और अभ्यनुज्ञात नहीं किये हैं। किन्तु कारण-विशेष होने पर वैहायस और गिद्धपट्ठ (गृद्ध स्पृष्ट) ये दो मरण अभ्यनुज्ञात हैं (४१३)। श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए दो प्रकार के मरण संदा वर्णित, कीर्तित, उक्त, प्रशंसित और अभ्यनुज्ञात किये हैं—प्रायोपगमनमरण और भक्तप्रत्याख्यानमरण (४१४)। प्रायोपगमनमरण दो प्रकार का कहा गया है—निर्हारिम और अनिर्हारिम। प्रायोपगमनमरण नियमतः अप्रतिकर्म होता है (४१५) । भक्तप्रत्याख्यानमरण दो प्रकार का कहा गया है निर्हारिम और अनिर्हारिम। भक्तप्रत्याख्यानमरण नियमतः सप्रतिकर्म होता है (४१६)। विवेचन- मरण दो प्रकार के होते हैं—अप्रशस्त मरण और प्रशस्त मरण। जो कषायावेश से मरण होता है वह अप्रशस्त कहलाता है और जो कषायावेश विना-समभावपूर्वक शरीरत्याग किया जाता है, वह प्रशस्त मरण कहलाता है। अप्रशस्त मरण के वलन्मरण आदि जो अनेक प्रकार कहे गये हैं उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है १. वलन्मरण- परिषहों से पीड़ित होने पर संयम छोड़कर मरना। २. वशार्तमरण- इन्द्रिय-विषयों के वशीभूत होकर मरना। ३. निदानमरण— ऋद्धि, भोगादि आदि की इच्छा करके मरना। ४. तद्भवमरण- वर्तमान भव की ही आयु बांध कर मरना। ५. गिरिपतनमरण- पर्वत से गिर कर मरना। ६. तरुपतनमरण– वृक्ष से गिर कर मरना। ७. जल-प्रवेशमरण – अगाध जल में प्रवेश या नदी में बहकर मरना। ८. अग्नि-प्रवेशमरण— जलती आग में प्रवेश कर मरना। ९. विष-भक्षणमरण—विष खाकर मरना। १०. शस्त्रावपाटनमरण- शस्त्र से घात कर मरना। ११. वैहायसमरण— गले में फांसी लगाकर मरना। १२. गिद्धपट्ट या गृद्धस्पृष्ट मरण- बृहत्काय वाले हाथी आदि के मृत शरीर में प्रवेश कर मरना। इस प्रकार मरने से गिद्ध आदि पक्षी उस शव के साथ मरने वाले के शरीर को भी नोंच-नोंच कर खा डालते हैं। इस प्रकार से मरने को गृद्धस्पृष्टमरण कहते हैं।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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