SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय स्थान तृतीय उद्देश चेव। ३७५-दो कंदिंदा पण्णत्ता, तं जहा— सुवच्छे चेव, विसाले चेव। ३७६-दो महाकदिंदा पण्णत्ता, तं जहा—हस्से चेव हस्सरती चेव। ३७७- दो कुंभंडिंदा पण्णत्ता, तं जहा- सेए चेव, महासेए चेव। ३७८-दो पतइंदा पण्णत्ता, तं जहा–पत्तए चेव, पतयवई चेव। अणपनों के दो इन्द्र कहे गये हैं सन्निहित और सामान्य (३७१)। पणपनों के दो इन्द्र कहे गये हैं—धाता और विधाता (३७२)। ऋषिवादियों के दो इन्द्र कहे गये हैं ऋषि और ऋषिपालक (३७३) । भूतवादियों के दो इन्द्र कहे गये हैं—ईश्वर और महेश्वर (३७४)। स्कन्दकों के दो इन्द्र कहे गये हैं सुवत्स और विशाल (३७५)। महास्कन्दकों के दो इन्द्र कहे गये हैं-हास्य और हास्यरति (३७६)। कूष्माण्डकों के दो इन्द्र कहे गये हैं श्वेत और महाश्वेत (३७७)। पतगों के दो इन्द्र कहे गये हैं—पतग और पतगपति (३७८)। ३७९-जोइसियाणं देवाणं दो इंद्रा पण्णत्ता, तं जहा—चंदे चेव, सूरे चेव। ज्योतिष्कों के दो इन्द्र कहे गये हैं—चन्द्र और सूर्य (३७९)। ३८०- सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा—सक्के चेव, ईसाणे चेव। ३८१- सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा सणंकुमारे चेव, माहिदे चेव। ३८२- बंभलोग-लंतएसु णं कप्पेसु दो इंद्रा पण्णत्ता, तं जहा—बंभे चेव, लंतए चेव। ३८३महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा- महासुक्के चेव, सहस्सारे चेव। ३८४- आणत-पाणत-आरण-अच्चुतेसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा—पाणते चेव, अच्चुते चेव। सौधर्म और ईशान कल्प के दो इन्द्र कहे गये हैं शक्र और ईशान (३८०)। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के दो इन्द्र कहे गये हैं—सनत्कुमार और माहेन्द्र (३८१)। ब्रह्मलोक और लान्तक कल्प के दो इन्द्र कहे गये हैं—ब्रह्म और लान्तक (३८२)। महाशुक्र और सहस्रार कल्प के दो इन्द्र कहे गये हैं—महाशुक्र और सहस्रार (३८३)। आनत और प्राणत तथा आरण और अच्युत कल्पों के दो इन्द्र कहे गये हैं—प्राणत और अच्युत (३८४)। विमान-पद __ ३८५-- महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु विमाणा दुवण्णा पण्णत्ता, तं जहा—हालिद्दा चेव, सुक्किल्ला चेव। महाशुक्र और सहस्रार कल्प में विमान दो वर्ण के कहे गये हैं हारिद्र-(पीत-) वर्ण और शुक्ल वर्ण (३८५)। . देव-पद ३८६- गेविजगा णं देवा दो रयणीओ उड्वमुच्चत्तेणं पण्णत्ता। ग्रैवेयक विमानों के देवों की ऊंचाई दो रनि कही गई है (३८६)। ॥ द्वितीय स्थान का तृतीय उद्देश समाप्त ॥
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy