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________________ ७४ स्थानाङ्गसूत्रम् धातकीषण्डद्वीप के पश्चिमार्ध में मन्दर पर्वत के उत्तर-दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गये हैं—दक्षिण में भरत और उत्तर में ऐरवत । वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (३३१)। ३३२— एवं जहा जंबुद्दीवे तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा—भरहे चेव, एरवए चेव, णवरं-कूडसामली चेव, महाधायईरुक्खे चेव। देवा गरुले चेव वेणुदेवे, पियदंसणे चेव।। ___इसी प्रकार जैसा जम्बूद्वीप के प्रकरण में वर्णन किया है, वैसा ही यहां पर भी कहना चाहिए, यावत् भरत और ऐरवत इन दोनों क्षेत्रों में मनुष्य छहों ही कालों के अनुभाव को अनुभव करते हुए विचरते हैं । विशेष इतना है कि यहां वृक्ष दो हैं—कूटशाल्मली और महाधातकी वृक्ष । कूटशाल्मली पर गरुडकुमार जाति का वेणुदेव और महाधातकी वृक्ष पर प्रियदर्शन देव रहता है (३३२)। ___३३३ – धायइसंडे णं दीवे दो भरहाई, दो एरवयाई, दो हेमवयाई, दो हेरण्णवयाइं, दो हरिवासाइं, दो रम्मगवासाइं, दो पुव्वविदेहाइं, दो अवरविदेहाइं, दो देवकुराओ, दो देवकुरुमहद्दुमा, दो देवकुरुमहद्दुमवासी देवा, दो उत्तरकुराओ, दो उत्तरकुरुमहदुमा, दो उत्तरकुरुमहदुमवासी देवा। ३३४- दो चुल्लहिमवंता, दो महाहिमवंता, दो णिसढा, दो णीलवंता, दो रुप्पी, दो सिहरी। ३३५- दो सद्दावाती, दो सद्दावातिवासी साती देवा, दो वियडावाती, दो वियडावातिवासी पभासा देवा, दो गंधावाती, दो गंधावातिवासी अरुणा देवा, दो मालवंतपरियागा, दो मालवंतपरियागवासी पउमा देवा। धातकीखण्ड द्वीप में दो भरत, दो ऐरवत, दो हैमवत, दो हैरण्यवत, दो हरिवर्ष, दो रम्यकवर्ष, दो पूर्वविदेह, दो अपरविदेह, दो देवकुरु, दो देवकुरुमहाद्रुम, दो देवकुरुमहाद्रुमवासी देव, दो उत्तरकुरु, दो उत्तरकुरुमहाद्रुम और दो उत्तरकुरुमहाद्रुमवासी देव कहे गये हैं (३३३)। वहां दो चुल्लहिमवान, दो महाहिमवान्, दो निषध, दो नीलवान्, दो रुक्मी और दो शिखरी वर्षधर पर्वत कहे गये हैं (३३४)। वहां दो शब्दापाती, दो शब्दापातिवासी स्वाति देव, दो विकटापाती, दो विकटापातिवासी प्रभासदेव, दो गन्धापाती, दो गन्धापातिवासी अरुणदेव, दो माल्यवत्पर्याय, दो माल्यवत्पर्यायवासी पद्मदेव, ये वृत्त वैताढ्य पर्वत और उन पर रहने वाले देव कहे गये हैं (३३५)। ३३६-दो मालवंता, दो चित्तकूडा, दो पम्हकूडा, दो णलिणकूडा, दो एगसेला, दो तिकूडा, दो वेसमणकूडा, दो अंजणा, दो मातंजणा, दो सोमसणा, दो विजुप्पभा, दो अंकावती, दो पम्हावती, दो आसीविसा, दो सुहावहा, दो चंदपव्वता, दो सूरपव्वता, दो णागपव्वता, दो देवपव्वता, दो गंधमायणा, दो उसुगारपव्वया, दो चुल्लहिमवंतकूडा, दो वेसमणकूडा, दो महाहिमवंतकूडा, दो वेरुलियकूडा, दो णिसढकूडा, दो रुयगकूडा, दो णीलवंतकूडा, दो उवदंसणकूडा, दो रुप्पिकूडा, दो मणिकंचणकूडा, दो सिहरिकूडा, दो तिगिंछकूडा। धातकीषण्ड द्वीप में दो माल्यवान्, दो चित्रकूट, दो पद्मकूट, दो नलिनकूट, दो एकशैल, दो त्रिकूट, दो
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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