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________________ द्वितीय स्थान तृतीय उद्देश इसी प्रकार हैरण्यवतक्षेत्र में दो प्रपातद्रह कहे गये हैं स्वर्णकूलाप्रपातद्रह और रूप्यकुलाप्रपातद्रह । वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा वे एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। ३००- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं एरवए वासे दो पवायदहा पण्णत्ताबहुसमतुल्ला जाव तं जहा रत्तप्पवायहहे चेव, रत्तावईपवायहहे चेव। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में ऐरवतक्षेत्र में दो प्रपातद्रह कहे गये हैं—रक्ताप्रपातद्रह और रक्तवतीप्रपातद्रह । वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा वे एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (३००)। महानदी-पद __ ३०१- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे वासे दो महामईओ पण्णत्ताओबहुसमतुल्लाओ जाव तं जहा–गंगा चेव, सिंधू चेव। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में भरतक्षेत्र में दो महानदिर्या कही गई हैं—गंगा और सिन्धु । वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा वे एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करती हैं (३०१)। ३०२— एवं जहा—पवातहहा, एवं णईओ भाणियावाओ जाव एरवए, वासे दो महाणईओ पण्णत्ताओ—बहुसमतुल्लाओ जाव तं जहा–रत्ता चेव, रत्तावती चेव। इसी प्रकार जैसे प्रपातद्रह कहे गये हैं, उसी प्रकार नदियाँ कहनी चाहिए। यावत् ऐरवत क्षेत्र में दो महानदियाँ कही गई हैं—रक्ता और रक्तवती । वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करती हैं (३०२)। कालचक्र-पद ३०३- जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवम-कोडाकोडीओ काले होत्था। ३०४- जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवमकोडाकोडीओ काले पण्णत्ते। ३०५ - जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवमकोडाकोडीओ काले भविस्सति। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत और ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी के सुषम-दुषमा आरे का काल दो कोडा-कोडी सागरोपम था (३०३)। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत और ऐवरत क्षेत्र में वर्तमान अवसर्पिणी के सुषम-दुषमा आरे का काल दो कोडा-कोडी सागरोपम कहा गया है (३०४)। जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्र में आगामी सुषम-दुषमा आरे का काल दो कोडा-कोडी सागरोपम होगा (३०५)। ३०६- जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए मणुया दो गाउयाइं उ8 उच्चत्तेणं होत्था, दोण्णि य पलिओवमाइं परमाउं पालइत्था। ३०७– एवमिमीसे
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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