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________________ ७२ ] [ सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध बन्धी विजय प्राप्त करते हैं) अथवा पुरुषविचय (पुरुषगण विज्ञानद्वारा जिसका विचय-अन्वेषण करते हैं) के विभंग (विभंगज्ञानवत् ज्ञानविशेष या विकल्पसमूह) का प्रतिपादन करूंगा। __इस मनुष्यक्षेत्र में या प्रवचन में (विचित्र क्षयोपशम होने से) नाना प्रकार की प्रज्ञा, नाना अभिप्राय, नाना प्रकार के शील (स्वभाव) विविध (पूर्वोक्त ३६३ जैसी) दृष्टियों, (आहारविहारादि में) अनेक रुचियों (कृषि आदि) नाना प्रकार के प्रारम्भ तथा नाना प्रकार के अध्यवसायों से युक्त मनुष्यों के द्वारा (अपनी-अपनी रुचि, दृष्टि आदि के अनुसार) अनेकविध पापशास्त्रों (सावद्यकार्यों में प्रवृत्त करने वाले ग्रन्थों) का अध्ययन किया जाता है। वे (पापशास्त्र) इस प्रकार हैं-(१) भौम (भूकम्प आदि तथा भूमिगत जल एवं खनिज पदार्थों की शिक्षा देने वाला शास्त्र), (२) उत्पात (किसी प्रकार के प्राकृतिक उत्पात-उपद्रव की एवं उसके फलाफल की सूचना देने वाला शास्त्र स्वप्न (स्वप्नों के प्रकार एवं उनके शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र), (४) अन्तरिक्ष(आकाश में होने वाले मेघ, विद्युत्, नक्षत्र आदि की गतिविधि का ज्ञान कराने वाला शास्त्र), (५) अंग (नेत्र, भृकुटि, भुजा आदि अंगों के स्फुरण का फल बताने वाला शास्त्र), (६) स्वर (कौआ, सियार एवं पक्षी आदि की आवाजों का फल बताने वाला स्वर-शास्त्र अथवा स्वरोदय शास्त्र), (७) लक्षण (नरनारियों के हाथ पैर आदि अंगों में बने हुए यव, मत्स्य, चक्र, पद्म, श्रीवत्स आदि रेखाओं या चिह्नों का फल बताने वाला शास्त्र), (८) व्यञ्जन (मस, तिल आदि का फल बताने वाला शास्त्र) (8) स्त्रीलक्षण (विविध प्रकार की स्त्रियों का लक्षणसूचक शास्त्र) (१०) पुरुषलक्षण (विविध प्रकार के पुरुषों के लक्षणों का प्रतिपादक शास्त्र), (११) हयलक्षण (घोड़ों के लक्षण बताने वाला शालिहोत्र शास्त्र) (१२) गजलक्षण (हाथियों के लक्षण का प्रतिपादक पालकाप्य शास्त्र) (१३) गोलक्षण (विविध प्रकार के गोवंशों का लक्षणसूचक शास्त्र), (१४) मेषलक्षण (भेड़ या मेंढे के लक्षणों का सूचक शास्त्र), (१५) कुक्कुटलक्षण (मुर्गों के लक्षण बताने वाला शास्त्र), (१६) तित्तिरलक्षण (नाना प्रकार के तीतरों के लक्षण बताने वाला शास्त्र), (१७) वर्तकलक्षण (बटेर या बत्तख के लक्षणों का सूचक शास्त्र), (१८) लावकलक्षण वक पक्षी के लक्षणों का प्रतिपादक शास्त्र), (११) चक्रलक्षण (चक्र के या चकवे के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र), (२०) छत्रलक्षण (छत्र के लक्षणों का सूचक शास्त्र), (२१) चर्मलक्षण (चर्म रत्न के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र), (२२) दण्डलक्षण (दण्ड के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र), (२३) असिलक्षण (तलवार के लक्षणों का प्रतिपादक शास्त्र) (२४) मणि-लक्षण (विविध मणियोंरत्नों के लक्षणों का प्रतिपादक शास्त्र), (२५) काकिनी-लक्षण (काकिणीरत्न या कौड़ी के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र), (२६) सुभगाकर (कुरूप को सुरूप या सुभग बनाने वाली विद्या), (२७) दुभगाकर (सुरूप या सूभग को कूरूप या दुर्भग बना देने वाली विद्या), (२८) गभंकरी (गर्भ रक्षा करने के उपाय बताने वाली विद्या), (२६) मोहनकरी (पुरुष या स्त्री को मोहित करने वाली अथवा कामोत्तेजन (मोह = मैथुन) पैदा करने वाली बाजीकरण करने वाली अथवा व्यामोहमतिभ्रम पैदा करने वाली विद्या), (३०) पाथर्वणी (तत्काल अनर्थ उत्पन्न करने वाली या जगत् का ध्वंस करने वाली विद्या), (३१) पाकशासन (इन्द्रजाल विद्या) (३२) द्रव्यहोम (मारण, उच्चाटन आदि करने के लिए मंत्रोंके साथ मधु, घृत आदि द्रव्यों की होमविधि बताने वाली विद्या) (३३) क्षत्रियविद्या (क्षत्रियों की शस्त्रास्त्रचालन एवं युद्ध आदि की विद्या) (३४) चन्द्रचरित (चन्द्रमा की गति आदि को बताने वाला शास्त्र), (३५) सूर्यचरित (सूर्य की गति-चर्या को बताने वाला शास्त्र), (३६) शुक्रचरित (शुक्रतारे की गति- चर्या को बताने वाला शास्त्र), (३७) बृहस्पतिचरित (बृहस्पति
SR No.003439
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages282
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size20 MB
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