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प्रथम उद्देशक : गाथा १८१ उपसर्गों से आहत : कायर साधकों का पलायन
१८१. एते भो कसिणा फासा फरसा दुरहियासया।
हत्थी वा सरसंवीता कोवाऽवसा गता गिहं ॥ १७ ॥ ति बेमि ॥ १८१. हे शिष्यो ! ये (पूर्वोक्त) समस्त (उपसर्गों और परीषहों के) स्पर्श (अवश्य ही) दुःस्सह और कठोर है, किन्तु बाणों से आहत (घायल) हाथियों की तरह विवश (लाचार) होकर वे ही (संयम को छोड़कर) घर को चले जाते हैं, जो (कायर) हैं। -यह मैं कहता हूँ।
विवेचन-उपसर्गो से आहत : असमर्थ साधकों का पलायन-इस गाथा में पूर्वगाथाओं में उक्त दुःसह एवं कठोर परीषहोपसर्गों के समय कायर पुरुष की पलायनवृत्ति का उल्लेख शिष्यों को सम्बोधित करते हुए किया गया है।
पूर्वोक्त उपसर्गों के स्पर्श कैसे ? इस उद्देशक में जितने भी परीषहों या उपसर्गों का निरूपण किया गया है, उन सब के स्पर्श- स्पर्शेन्द्रियजनित अनुभव-अत्यन्त कठोर हैं तथा दुःसह्य हैं।
___उन उपसर्गस्पर्शो का प्रभाव किन पर कितना ? उपसर्ग या परीषह तो जैसे हैं, वैसे ही हैं, अन्तर तो उनकी अनुभूति में होता है । जो साधक कायर, कच्चे और गुरुकर्मी होते हैं, उन्हें ये स्पर्श अत्यन्त तीब्र, असह्य लगते हैं । फलतः जिस तरह रणक्षेत्र में वाणों के प्रहार से पीड़ित (घायल) हाथी मैदान छोड़कर भाग जाते हैं, उसी तरह वे अपरिपक्व साधक परीषहों और उपसर्गों की मार से पीड़ित एवं विवश होकर संयम को छोड़कर पुनः गृहवास में प्रवृत्त हो जाते हैं, लेकिन जो परिपक्व वीर साधक होते हैं, वे संयम में डटे रहते हैं।२०
कठिन शब्दों की व्याख्या-सरसंवीता-बाणों के प्रहारसे आकुल या पीड़ित । कीवा-असमर्थ, कायर साधक । अवसा-परवश या गुरु कर्माधीन (भारीकर्मा) चूर्णिकार 'कौवाऽवसा' के बदले दो पाठान्तर प्रस्तुत करते हैं-'कोवा वसगा' और 'तिव्वसढगा' प्रथम पाठान्तर का अर्थ किया गया है-'क्लीवा वशका नाम परीषहे वशकाः"-अर्थात् -क्लीव (असमर्थ कायर) और वशक अर्थात्-परीषहों से विवश । द्वितीय पाठान्तर का अर्थ है-"तीव्र शठाः तीव्रशठाः तीव्रर्वा शठाः तीव्रशठाः, तीव्र:परीषहैः प्रतिहताः।" अर्थात् तीव्र शठता (धृष्टता) धारण किये हुए तीब्रशठ, अथवा तीब्र परीषह से शठ प्रतिहत-पीड़ित । वृत्तिकार ने भी 'तिब्बसढ़ा पाठान्तर का उल्लेख करके अर्थ किया है-तीव्र रूपसर्गरभिद्रु ताः शठाः शठानुष्ठानाः संयम परित्यज्य गृहंगताः ।' अर्थात्-तीव्र उपसर्गों से पीड़ित शठ यानी शठता का कार्य करने वाले ।१
प्रथम उद्देशक समाप्त
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२० सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ८३ के आधार पर २१ (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ८३
(ख) सूयगडंग चूणि (मू० पा० टि०) पृ० ३३