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________________ ६६ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध दो तरह से आहार लिया जा सकता है (१) जो देने को उद्यत है, उसके हाथ आदि सचित्त पानी आदि से सने हैं, परन्तु देय वस्तु सचित्त से लिप्त नहीं है, ऐसी स्थिति में सचित्त से सने हुए हाथ आदि जिसके न हों, वह अन्य व्यक्ति देना चाहे तो साधु उस आहार को ले सकता है। (२) दाता के हाथ आदि सचित्त जल आदि से संसृष्ट नहीं हैं, किन्तु देय वस्तु से संसृष्ट हैं तो ले-ले। सचित्त-मिश्रित आहार-ग्रहण निषेध ____ ३६१. से भिक्खू वा २ [ जाव समाणे ] से जं पुण जाणेजा-पिहुयं वा बहुरयं वा जाव चाउलपलंबं वा अस्संजए भिक्खुपडियाए चित्तमंताए सिलाए जाव मक्कडासंताणाए कोट्टिसु वा कोटेंति वा कोट्टिस्संति वा उप्फणिंसु वा ३। तहप्पगारं पिहुयं वा जाव चाउलपलंबं वा अफासुयं जाव' णो पडिगाहेजा। । ३६२. से भिक्खुवा २ जाव समान से जं पुण जाणेजा-बिल वा लोणं उब्भियं वा लोणं अस्संजए भिक्खुपडियाए चित्तमंताए सिलाए लाव संताणाए भिंदिसु वा भिंदंत वा भिंदिस्संति वा रुचिंसु वा ३, बिलं वा लोणं उब्भियं वा लोणं अफासुयं जावणो पडिगाहेज्जा। ३६३. से भिक्खु वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेजा-असणं वा ४ अगणिणिक्खित्तं, तहप्पगारं असणं वा ४ अफासुर्य लाभे संते णो पडिगाहेजा। केवली बूया-आयाणमेयं।अस्संजए भिक्खुपडियाए उस्सिचमाणे वा निस्सिचमाणे" गेरुय वण्णिय सेडिय,सोरट्ठिय पिट्ट कुक्कुसकए य। उक्टुमसंसंटे, संसटे चेव बोधव्वे ॥३४॥ असंसद्रुण हत्थेण, दव्वीए भायणेण वा। दिजमाणं न इच्छेज्जा, पच्छाकम्मं जहिं भवे॥३५॥ -दशवै० ५/१ (ख) दशवै० चूर्णि० पृ० १७८ में देखिए १७ गाथाएं। १. टीका पत्र ३४१ २. अन्य प्रतियों में, वृत्ति में भी 'जाव समाणे' पद है, ऐसा प्रतीत होता है। ३. 'बहुरयं वा' के बाद पठित 'जाव' शब्द 'भुजियं वा मंथु वा चाउलं वा' सूत्र ३२६ के पाठ का सूचक है। ४. 'रप्फणिंसु वा' के बाद '३' का अंक 'उप्फणंति वा उप्फणिस्संति वा' का सूचक है। ५. यहाँ 'अफासुर्य' के बाद 'जाव' शब्द 'अणेसजिण मण्णमाणे लाभे संते' इतने पाठ का सूचक है। ६. 'रुचिंसु वा ३' का अर्थ चूर्णिकार ने किया है-रुचिंसु वा रुचंति वा,रुचिस्संति वा इत्यर्थो ज्ञेयः। पीसा था, पीसती है, या पीसेगी- यह अर्थ समझना चाहिए। ७. 'निस्सिचमाणे' का अर्थ चूर्णिकार ने किया है-'णिसिंचति तहि अण्णं छभति' अर्थात् बर्तन में अन्न ऊरते (आंधण डालते) समय अन्न को मसलती है।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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