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________________ प्रथम अध्ययन : चतुर्थ उद्देशक: सूत्र ३४९ - ३५० एकान्त में चला जाए और जहाँ कोई आता-जाता न हो और न देखता हो, वहाँ ठहर जाए। जब वह यह जान ले कि दुधारू गायें दुही जा चुकी हैं और अशनादि चतुर्विध आहार भी अब तैयार हो गया है तथा उसमें से दूसरों को दे दिया गया है, तब वह संयमी साधु आहारप्राप्ति की दृष्टि से वहाँ से निकले या उस गृहस्थ के घर में प्रवेश करे । — विवेचन- - आहर के लिए प्रवेश निषिद्ध कब, विहित कब? - • इस सूत्र में गृहस्थ के घर में तीन कारण विद्यमान हों तो आहारार्थ प्रवेश के लिए निषेध किया गया है— (१) गृहस्थ के यहाँ गायें दुही जा रही हों, (२) आहार तैयार न हुआ हो, (३) किसी दूसरे को उसमें से दिया न गया हो । अगर ये तीनों बाधक कारण न हों तो साधु आहार के लिए उस घर में प्रवेश कर सकता है, वहाँ से निकल भी सकता है। ४५ गृह प्रवेश में निषेध के जो तीन कारण बताए हैं, उसका रहस्य वृत्तिकार बताते हैं- गायें दुहते समय यदि साधु गृहस्थ के यहाँ जाएगा तो उसे देखकर गायें भड़क सकती हैं, कोई भद्र श्रद्धालु गृहस्थ साधु को देखकर बछड़े को स्तनपान करता छुड़ाकर साधु को शीघ्र दूध देने की दृष्टि से जल्दी-जल्दी गायों को दुहने लगेगा, गायों को भी त्रास देगा, बछड़ों के भी दूध पीने में अन्तराय लगेगा। अधपके भात को अधिक ईंधन झौंक कर जल्दी पकाने का प्रयत्न करेगा, भोजन तैयार न देखकर साधु के वापस लौट जाने से गृहस्थ के मन में संक्लेश होगा, वह साधु के लिए अलग से जल्दी-जल्दी भोजन तैयार कराएगा तथा दूसरों को न देकर अधिकांश भोजन साधु को दे देगा तो दूसरे याचकों या परिवार के अन्य सदस्यों को अन्तराय होगा । १ अगर कोई साधु अनजाने में सहसा गृहस्थ के यहाँ पहुँचा और उसे उक्त बाधक कारणों का पता लगे, तो इसके लिए विधि बताई गई है कि वह साधु एकान्त में, जन-शून्य व आवागमन रहित स्थान में जाकर ठहर जाए; जब गायें दुही जा चुकें, भोजन तैयार हो जाए, तभी उस घर में प्रवेश करे । २ अतिथि श्रमण आने पर भिक्षा विधि ३५०. भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु समाणा रे वा वसमाणा वा गामाणुगामं दुइज्जमाणेखुड्डाए खलु अयं गामे, संणिरुद्ध, णो महालए, से हंता भयंतारो बाहिरगाणि गामाणि भिक्खायरियाए वयह। संति तत्थेगतियस्स भिक्खुस्स पुरेसंथुया ववा पच्छासंथुया वा परिवसंति, १. टीका पत्र ३३५ २. टीका पत्र ३३५ ३. चूर्णि में इसके स्थान पर पाठान्तर है- 'सामाणा वा वसमाणा वा गामाणुगामं दुहज्जमाणे' । अर्थ एकसा है। चूर्णिकार ने इस सूत्र - पंक्ति की व्याख्या इस प्रकार की है- 'भिक्खणसीला भिक्खागा नामग्रहणा
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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