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________________ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध आचार्य शीलांक के इस समाधान से ऐसा प्रतीत होता है कि वह उत्तरार्ध का विधान किसी कठिन परिस्थिति में फंसे हुए श्रमण की तात्कालिक समस्या के समाधान स्वरूप है। वास्तव में इस प्रकार के भोज (संखडि) में जाना श्रमण का विधि-मार्ग नहीं है, किन्तु अपवाद-मार्ग के रूप में ही यह कथन है। इसका आसेवन श्रमण के स्व-विवेक पर निर्भर है। इस बात की पुष्टि निशीथसूत्र की चूर्णि भी करती है। 'मंसादियं' आदि शब्दों की व्याख्या वृत्तिकार के अनुसार इस प्रकार हैमंसादियं—जिस संखडि में मांस ही आदि में (प्रधानतया) हो। मच्छादियं- जिस संखडि में मत्स्य ही आदि (प्रारम्भ) में (प्रधानतया) हो। 'मंसखलं वा मच्छखलं वा'- संखडि के निमित्त मांस या मत्स्य काट-काटकर सुखाया जाता हो, उसका ढेर मांसखल तथा मत्स्यखल कहलाता है। आहेणं-विवाह के बाद नववधूप्रवेश के उपलक्ष्य में दिया जाने वाला भोज, पहेणं-पितृगृह में वधू के प्रवेश पर दिया जाने वाला भोज, हिंगोलं-मृतक भोज, संमेलं परिजनों के सम्मान में दिया जाने वाला प्रीतिभोज (दावत) या गोठ। गो-दोहन वेला में भिक्षार्थ प्रवेश निषेध ३४९. से भिक्खू वा २ गाहावति जाव पविसित्तुकामे से जं पुण जाणेजा,खीरिणीओ गावीओ खीरिजमाणीओ पहाए असणं वा ४ उवक्खडिजमाणं पेहाए, पुरा अप्पजूहिते। सेवं णच्चा णो गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाए णिक्खमेज वा पविसेज वा। से त्तमायाए एगंतमवक्कमेजा, एगंतवक्कमित्ता अणावायमसंलोए चिट्टेजा। अह पुण एवं जाणेजा, खीरिणीओ गावीओ खीरियाओ पेहाए, असणं वा ४ उवक्खडितं पेहाए, पुरा पजूहिते।सेणच्चा ततो संजयामेव गहावतिकुलं पिंडवातपडियाए णिक्खमेज वा पविसेज वा। ३४९. भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करना चाहते हों; (यदि उस समय) यह जान जाएँ कि अभी दुधारू गायों को दुहा जा रहा है तथा अशनादि आहार अभी तैयार किया जा रहा है, या हो रहा है, अभी तक उसमें से किसी दूसरे को दिया नहीं गया है। ऐसा जानकर आहार प्राप्ति की दृष्टि से न तो उपाश्रय से निकले और न ही उस गृहस्थ के घर में प्रवेश करे। किन्तु (गृहस्थ के यहाँ प्रविष्ट होने पर गोदोहनादि को जान जाए तो) वह भिक्षु उसे जानकर १. देखिए इसी सूत्र के मूलपाठ टिप्पण १, पृ० ४१ पर २. टीका पत्र ३३४ ३. चूर्णिकार ने इसका भावार्थ इस प्रकार दिया है-'उवक्खडिजमाणे संजतट्टाए'- अर्थात् संयमी साधु के लिए तैयार किये जाते हुए...।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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