________________
प्रथम अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र ३३७ इस दृष्टि से यहाँ जितने भी नाम गिनाए हैं, वे वंशवाचक या ज्ञातिवाचक (प्रायः अपने पेशे से सम्बन्धित जातिसंज्ञक) हैं। इस दृष्टि से उग्र का आरक्षिकवंश, भोग का राजा के पूज्य-पुरोहित, भोक्ता आदि वंश, राजन्य का राजा के मित्रस्थानीय वंश, क्षत्रिय का राठौड़ आदि वंश, इक्ष्वाकु का ऋषभदेव स्वामी के वंशज, हरिवंश का हरि - (श्रीकृष्ण, अरिष्टनेमि आदि के) वंशज, एसिय का गोपाल ज्ञाति, वेसिय का वैश्यज्ञातीय वणिक्, गण्डाक का नापित-ज्ञातीय, कोट्टांग का सुथार या बढ़ईजातीय, वोकसालिय का तन्तुवाय (बुनकर) ज्ञातीय, गामरक्ख का ग्रामरक्षक ज्ञातीय अर्थ वृत्तिकार ने किया है। चूर्णिकार ने कुछ पदों के अर्थ इस प्रकार दिए हैं - एसिय- वणिक्, वेसिय- रंगरेज (रंगोपजीवी), गंडाक - ग्राम का आदेशवाहक, कोट्टाग- रथकार। प्रासुक और एषणीय का विचार तो सभी घरों में आहार लेते समय करना ही चाहिए। इन्द्रमह आदि उत्सव में अशनादि एषणा
३३७. से भिक्खू वा २ जाव अणुपविढे समाणे से जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ समवाएसु वा पिंडणियरेसु वा इंदमहेसु वा खंदमहेसु वा एवं रुद्दमहेसु वा मुगुंदमहेसु वा भूतमहेसु वा जक्खमहेसु वा नागमहेसु वा थूभमहेसु वा चेतियमहेसु वा रुक्खमहेसु वा गिरिमहेसुवा वरिमहेसु वा अगडमहेसुवा तलागमहेसु वा दहमहेसुवा णदिमहेसुवा सरमहेसु वा सागरमहेसुवा आगरमहेसुवा अण्णतरेसुवा तहप्पगारेसु विरूवरूवेसुमहामहेसु वट्टमाणेसु बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए एगातो उक्खातो परिएसिजमाणे दोहिं जाव संणिहि-संणिचयातो वा परिएसिजमाणे पेहाए तहप्पगारं असणं वा ४ अपुरिसंतरगयं जाव णो पडिगाहेज्जा।
अह पुण एवं जाणेज्जा- दिण्णं जं तेसिं दायव्वं, अह तत्थ भुंजमाणे पेहाए गाहावतिभारियं वा गाहावतिभगिणिं वा गाहावतिपुत्तं वा गाहावतिधूयं वा सुण्हं वा धातिं वा दासं वा दासिं वा कम्मकरं वा कम्मकरि वा से पुव्वामेव आलोएजा ३-आउसो त्ति वा भगिणि त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं भोयणजायं? से सेवं वदतस्स परो असणं वा ४ आहटु दलएज्जा, तहप्पगारं असणं वा ४ सयं वा णं जाएजा, परो वा से देजा, फासुयं जाव पडिगाहेजा। १. (क) टीका पत्र ३२७
(ख) आचा० चूर्णि मूलपाठ टि० पृ० १०९ २. 'वणीमए' के बदले 'वणीमएसु' पाठ प्रायः प्रतियों में मिलता है, परन्तु पूर्वापर अनुसन्धान करने पर 'वणीमए' पाठ ही युक्तिसंगत प्रतीत होता है। आलोएज्जा का अर्थ चूर्णिकार करते हैं -आलोएजा-आलविज्जा, अर्थात् - बोले। वृत्तिकार इसके दो अर्थ करते हैं - आलोकयेत् - पश्येत्, प्रभुं प्रभुसन्दिष्टं या ब्रूयात् । आलोकयेत् - देखे, तथा गृह-स्वामी को, या गृहपति के सेवक से कहे।