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आचारांग सूत्र -द्वितीय श्रुतस्कन्ध
'से भिक्खू वा २' संक्षिप्त कर दिया गया है। इसी प्रकार असणं वा ४ जाव' या 'असणं वा ४' संक्षिप्त करके आगे के सूत्रों में संकेत किये गये
(ग) पुनरावृत्ति-कहीं-कहीं'२' का चिह्न द्विरुक्ति का सूचक भी हुआ है-जैसे सूत्र ३६० में 'पग्गिझिय २'"उद्दिसिय २'इसका संकेत है- 'पग्गिज्झिय पग्गिझिय' 'उद्दसिय उद्दिसिय।' अन्यत्र भी यथोचित ऐसा समझें।
क्रियापद के आगे '२'का चिह्न कहीं क्रियाकाल के परिवर्तन का भी सचन करता है, जैसे सत्र ३५७ में – 'एगंतमवक्कमेजा २' यहाँ 'एगंतमवक्कमेजा, 'एगंतमवक्कमेत्ता' पूर्वकालिक क्रिया का सूचक है।
क्रियापद के आगे '३' का चिह्न तीनों काल के क्रियापद के पाठ का सूचन करता है, जैसे - सूत्र ३६२ में रुचिंसु वा ३' यह संकेत- 'रुचिंसु वारुचंति वा रुचिस्संति वा' इस त्रैकालिक का सूचक है। ऐसा अन्यत्र भी समझना चाहिये। इसके अतिरिक्त 'तहेव' - (अक्कोसंति वा तहेव-सूत्र ६१८)
(अतिरिच्छछिण्णं तहेव -सूत्र ६२९) एवं - (एवं णेयव्वं जहा सद्दपडिमा -सत्र ६८९) जहा - (पाणाई जहा पिंडेसणाए-सूत्र ५५४)
तं चेव - (तं चेव जाव अण्णेण्णसमाहीए -सूत्र ४५७) आदि संकेत पद भी यत्र तत्र दृष्टिगोचर होते हैं। इन सबको यथास्थान शुद्ध अन्वेषण करके समझ लेना चाहिये।
- संपादक
संक्षिप्त संकेतित सूत्र
जाव पद ग्राह्य पाठ
समग्र पाठ युक्त मूल सूत्र-संख्या
५७६ ५२४
५७७,५७८ ५२५ ४४९,५१८
अंतलिक्खजाते जाव अकिरियं जाव अक्कोसंति वा जाव अक्कोसेज वा जाव अणंतरहिताए पुढवीए... जाव अणेसणिज्जं ..... जाव
४७१
४२२
३५३
३५३
३७१,५७५, ६१२ ३३२, ३३५, ३६०, ३७७, ३७८, ३९०, ४०४-४०५ ५५६,४१४-४१८ ३३५, ३३७ ६४८ ३४८,४६८ ४०४ ४१२, ४५५,५७०, ५७१, ६२४, ६२५, ६२७,६३१
३५३ ३३२[२]
३३१
अपुरिसंतरकडे जाव अपुरिसंतरकडं वा जाव अपुरिसंतरगडं वा जाव अप्पंडा जाव अप्पंडे जाव अप्पंडं जाव
३३१ ३३१
३२४