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आचारांग सूत्र -द्वितीय श्रुतस्कन्ध
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परिशिष्ट : ३
'जाव' शब्द संकेतिक सूत्र-सूचना
प्राचीन काल में आगम तथा श्रुतज्ञान प्रायः कण्ठस्थ रखने की परिपाटी थी। कालान्तर में स्मृतिदौर्बल्य के कारण आगम-ज्ञान लुप्त होता देखकर वीर निर्वाण संवत् ९०० के लगभग श्री देवर्द्धिगण क्षमाश्रमण के निर्देशन से आगम लिखने की परम्परा हुई।
स्मृति की दुर्बलता, लिपि की सुविधा, तथा कम लिखने की वृत्ति - इन तीन कारणों से सूत्रों में आये बहुत-से समानपद जो बार -बार आते थे, उन्हें संकेतों द्वारा संक्षिप्त कर देने की परम्परा चल पड़ी। इससे पाठ लिखने में बहुत-सी पुनरावृत्तियों से बचा गया।
इस प्रकार के संक्षिप्त संकेत आगमों में अधिकतर तीन प्रकार के मिलते हैं।
१. वण्णओ- (अमुक के अनुसार इसका वर्णन समझें)- भगवती, ज्ञाता, उपासकदशा आदि अंग व उववाई आदि उपांग आगमों में इस संकेत का काफी प्रयोग हुआ है। उववाई सूत्र में बहुत-से वर्णन हैं, जिनका संकेत अन्य सूत्रों में मिलता है।
२.जाव-(यावत्)- एक पद से दूसरे पद के बीच के दो, तीन, चार आदि अनेक पद बार-बार न दुहराकर 'जाव' शब्द द्वारा सूचित करने की परिपाटी आचारांग, उववाई आदि सूत्रों में मिलती है। आचारांग में, जैसे-सूत्र ३२४ में पूर्ण पाठ है
'अप्पड़े अप्पपाणे अप्पबीए, अप्पहरिए, अप्पोसे
अप्पुदए अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा-संताणए' आगे जहाँ इसी भाव को स्पष्ट करना है, वहाँ सूत्र ४१२, ४५५, ५७० आदि में 'अप्पंडे जाव' के द्वारा संक्षिप्त कर संकेत मात्र कर दिया गया है। इसी प्रकार 'जाव' पद से अन्यत्र भी समझना चाहिए।
हमने प्रायः टिप्पण में 'जाव' पद से अभीष्ट सूत्र की संख्या सूचित करने का ध्यान रखा है।
कहीं विस्तृत पाठ का बोध भी 'जाव' शब्द से किया गया है। जैसे सूत्र २१७ में 'अहेसणिज्जाइं वत्थाई जाएज्जा जाव' यहाँ सूत्र २१४ के 'अहेसणिज्जाई वत्थाई जाएज्जा, अहापरिग्गहियाइं वत्थाई धारेज्जा, णो रएज्जा, णो धोत-रत्ताई वत्थाई धारेजा अपलिउंचमाणे गामंतरेसु ओमचेलिए।' इस समग्र पाठ का 'जाव' शब्द द्वारा बोध करा दिया है।
इसी प्रकार उववाइ आदि सूत्रों में वर्णन एक बार आ गया है। दुबारा आने पर वहाँ जाव' शब्द का उपयोग किया गया है। जैसे-"तेण कालेणं .... जाव परिसा ण्णिग्गया।" यहाँ 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' आदि बहुत लंबे पाठ को 'जाव' में समाहित कर लिया है।
३. अंक संकेत-संक्षिप्तीकरण की यह भी एक शैली है। जहाँ दो-तीन, चार या अधिक समान पदों का बोध कराना हो, वहाँ अंक २, ३, ४,६ आदि अंकों द्वारा संकेत किया गया है। जैसे
(क) सूत्र ३२४ में-से भिक्खू वा भिक्खूणी वा । (ख) सूत्र १९९ में - असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा साइमं वा आदि।