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________________ पन्द्रहवां अध्ययन : सूत्र ७७४ विस्तृत रूप में उपलब्ध रहा होगा जिसके अनुसार उन्होंने उसकी चूर्णि. प्रस्तुत की है। हम यहाँ चूर्णि सम्मत पाठ संक्षेप में दे रहे हैं छिन्नसोति, कंसपादीव मुक्कतोये, संखो इव निरजणे, जीवो इव अप्पडिहयगई, गगणमिव णिरालंबणे, वायुरिव अपडिबद्धे सारयसलिलं व सुद्धहियए, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे, कुम्मो इव गुत्तिंदि, खग्गविसाणं व एगजाए, विहग इव विप्पमुक्के, भारंडपक्खी, इव अप्पमत्ते, कुंजरो इव सोंडीरे जच्चकणगं व जायरूवे, वसुंधरा इव सव्वफासविसहे।" "नत्थिणं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधो भवति।सेच पडिबंधे चउव्विहे पण्णत्ते, तंजहा-दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। दव्वओ णं सचित्ताचित्त मीसिएसु दव्वेसु, खेत्तओ णंगामे वा नगरे वा अरण्णे वा " । कालओ णं समए वा आवलियाए वा । भावओ णं कोहे माणे वा मिच्छावंसणसल्ले वा।"१ उनके समस्त स्रोत (आस्रव) नष्ट हो गये। कांस्य-पात्र की तरह निर्लेप हुए। शंख की तरह रंग (राग-द्वेष रूप रंग) से रहित, जीव की तरह अप्रतिहतगति, गगन की तरह आलम्बन, (पर-सहाय) रहित, वायु की भाँति अप्रतिबद्धविहारी, शरद् ऋतु के पानी की तरह निर्मल हृदय, . • कमल पत्र की तरह निर्लेप, कूर्म (कछुआ) की तरह गुप्तेन्द्रिय, वराह (गेंडा) के सींग की तरह एकाकी, पक्षी की भाँति सर्वथा उन्मुक्तचारी, भारंड पक्षी की तरह अप्रमत्त, कुंजर की (हस्ती) . की तरह शूरवीर, स्वर्ण की भाँति कान्तिमान्, पृथ्वी की भाँति क्षमाशील, ... उन भगवान् को कहीं पर भी प्रतिबंध नहीं था। प्रतिबन्ध चार प्रकार का होता हैजैसे, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से। द्रव्य से—सचित्त, अचित्त मिश्रद्रव्यों में, श्रेत्र से ग्राम, नगर, अरण्य आदि। काल से—समय आवलिका आदि....। भाव से—क्रोध, मान आदि मिथ्यादर्शनशल्य पर्यन्त इसी प्रकार का पाठ कल्पसूत्र २ में है, तथा स्थानांग के ९ स्थान में भी इसी आशय का विस्तृत पाठ मिलता है। सूत्रकृतांगरे प्रश्नव्याकरण औपपातिक ५ एवं राजप्रश्नीयसूत्र में भी सामान्य अनगार के सम्बन्ध में पूर्वोक्त उपमावाले पाठ मिलते हैं। निष्कर्ष यह है कि भगवान् में वे सब गुण विद्यमान थे, जो एक आदर्श अनगार में होने चाहिए। भगवान् को केवलज्ञान की प्राप्ति ७७२. ततो णं समणस्स भगवओ महावीरस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स बारस वासा १. आचारांग चूर्णि मू० पा०टि० पृ० २७४ २. कल्पसूत्र सू० ११७ से १२१ ३. से जहा नामए अणगारा भगवंतो. अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। -सत्र क० २/१ ४. .... संजते इरियासमिते " छिन्नगन्थे ... मुक्कतोए चरेज धम्म। -प्रश्नव्या०५ संवरद्वार ५. समणस्स णं महावीरस्स अंतेवासी ... कत्थइ पडिबंधे भवेति । ... एव तेसिंण भवइ। -औपपातिक सूत्र
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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