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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध राजा के भवन में संग्रह , हिरण्यादि में वृद्धि के कारण माता पिता द्वारा वर्द्धमान नाम रखने का विचार, सिद्धार्थ द्वारा हर्षवश पारितोषिक, प्रीतिभोज आदि विस्तृत वर्णन कल्पसूत्र में देखना चाहिए। यहाँ संक्षेप में मुख्य बातें कह दी गई हैं। १ भगवान् का नामकरण
७४०. जतो णं पभिति भगवं महावीरे तिसिलाए खत्तियाणीए कुच्छिंसि गब्भं आहूते ततो णं पभिति तं कुलं विपुलेणं हिरण्णेणं सुवण्णेणं धणेणं धण्णेणं माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल-प्पवालेणं अतीव अतीव परिवति।
ततो णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो एयमटुं जाणित्ता ४ णिव्वत्तदसाहंसि ५ वोकंतंसि सुचिभूतंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेंति। विपुलं असण- पाण-खाइम-साइमं उवक्कखडावेत्ता मित्त-णाति-सयण-संबंधिवग्गं उवनिमंतेत्ता बहवे समण- माहण-किवण-वणीमग भिच्छुडग पंडरगाईण विच्छउँति, विग्गोवेंति, विस्साणेति, दायारेसुणं दाणं पजाभाएंति। विच्छड्डित्ता, विग्गोवित्ता, विस्साणित्ता, दायारेसुणं दाणं पज्जाभाइत्ता मित्त-णाइ-सयण-संबंधिवग्गं भुंजावेति। मित्त-णाति-सयण-संबंधिवग्गं भुंजावित्ता, मित्त-णाति-सयण-संबंधिवग्गेण इमेयारूवं णामधेनं कारवेंति११ – जतो णं पभिति इमे कुमारे तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गब्भे १. कल्पसूत्र मूलपाठ पृ०८० से १३८ तक। २. यहाँ किसी-किसी प्रति में 'हिरण्णेणं' पाठ नहीं है। ३. 'धणेणं' के बदले पाठान्तर है—'धण्णेणं'-धान्य से। ४. 'जाणित्ता' के बदले—'जाणिया' पाठान्तर है। ५. 'णिव्वत्तदसाहंसि' के बदले कल्पसूत्र में पाठ है- एक्कारसमे दिवसे बीइक्वंते निव्वतिए असूतिजातक
कम्मकरणे सम्पत्ते बारसाहदिवसे। ग्यारहवाँ दिन व्यतीत होने पर असूति (अशुचि) जातककर्म से निवृत
होने पर बारहवाँ दिन आने पर। ६. 'भिच्छुडंग-पंडरगाईण' से मिलता जुलता ज्ञाताधर्मकथांग के पन्द्रहवें अध्ययन में समागत पाठ-चारए
वा “भिच्छंडे वा पंडरंगे वा-है। उसकी टीका में अभयदेवसूरि ने अर्थ किया है-'चरको धाटिभिक्षाचरः। भिक्षाण्डो भिक्षाभोजी सुगतशासनस्य इत्यन्ने, पाण्डुरागः शैवः। अर्थात् -चरक संन्यासियों का झुंडविशेष, यूथबंध घूमकर भिक्षाटन करने वाले भिक्षुओं की एक जाति । भिक्षाण्ड-भिक्षाभोजी, कई आचार्य कहते
हैं-'बौद्ध शासन के भिक्षु हैं । पाण्डरागशैव भिक्षु।" 6. 'विच्छड्डेति' के बदले पाठान्तर हैं- 'विच्छडेंति', 'विच्छडेइ'। ८. 'दायारेसु णं पजभाएंति' का समानार्थक पाठ कल्पसूत्र में मिलता है-'दाणं दायारेहिं परिभाएत्ता।' ९. 'विस्साणित्ता' के बदले पाठान्तर है। विस्साणिया।' १०. 'णं दाणं पज्जाभाइत्ता' के बदले पाठान्तर हैं- 'णं पज्जाभाइत्ता', 'णं दाणं पज्जाभाइत्ता' 'णं दायं
पजाभाइत्ता।' ११. 'कारवेंति' के बदले पाठान्तर हैं-कारवेति, करेंति।