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त्रयोदश अध्ययन : सूत्र ६९१-७००
६९४. से से परो पादाई तेल्लेण वा घतेण वा वसाए वा मक्खेज वा भिलिंगेज' वा णो तं सातिए णो तं णियमे।
६९५. से से परो लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोढेज वा उव्वलेज वा, णो तं सातिए णो तं णियमे।
६९६. से से परो पादाई सोओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोएज वा, णो तं सातिए णो तं णियमे।
६९७. से से परो पादाइं अण्णतरेण विलेवणजातेण आलिंपेज वा विलिंपेज वा, णो तं सातिए णो तं णियमे।
६९८. से से परो पादाइं अण्णतरेण धूवणजाएणं धूवेज वा पधूवेज वा, णोतं सातिए णो तं णियमे।
६९९. से से परो पादाओ खाणुयं वा कंटयं वाणीहरेज वा विसोहेज वा, णोतं सातिए णोतं णियमे।
७००.से से परो पादाओ पूर्व वा सोणियं वाणीहरेज वा विसोहेज वा, णो तं सातिए णो तं णियमे।
६९१. कदाचित् कोई गृहस्थ धर्म-श्रद्धावश मुनि के चरणों को वस्त्रादि से थोड़ा-सा पोंछे अथवा बार-बार अच्छी तरह पोंछ कर साफ करे, साधु उस परक्रिया को मन से न चाहे तथा वचन और काया से भी न कराए। - ६९२. कदाचित् कोई गृहस्थ मुनि के चरणों को सम्मर्दन करे या दबाए तथा बार-बार मर्दन करे या दबाए, साधु उस परक्रिया की मन से भी इच्छा न करे, न वचन और काया से कराए।
६९३. यदि कोई गृहस्थ साधु के चरणों को फूंक मारने हेतु स्पर्श करे, तथा रंगे तो साधु उसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से कराए। १. इसके बदले पाठान्तर हैं -भिलंगेज वा, हिलंगेज वा अब्भिंगेज वा। २. निशीथचूर्णि उ० १३, में -'कक्केण' आदि का अर्थ - "कको सो दव्वसंजोगेण वा असंजोगेण वा भवति।
लोद्धो रुक्खो, तस्स छल्ली लोखं भन्नति । वन्नो पुण हिंगुलुगादी तेल्लमोइओ। चुन्नो पुण गम्मणिगादी फला चुन्नी कता।" कल्क वह है, जो द्रव्यों के संयोग या असंयोग से होता है। लोद्ध वृक्ष होता है, उसकी छाल को भी लोद्ध कहते हैं। तेल में स्निग्ध हिंगलू आदि को वर्ण कहते हैं। सुगन्धित फल को चूर्ण करने पर चूर्ण कहते
३. 'उल्लोढेज वा' के बदले में पाठान्तर हैं - उल्लोडेज वा 'उल्लोवेज वा'। ४. 'उच्छोलेज' के बदले पाठान्तर हैं – 'उज्जोलेज,' उज्जलेज उल्लोलेज्ज । अर्थ है शरीर को उज्ज्वल करना,
साफ करना।
इसके बदले पाठान्तर है- 'से सिया परो पादाई'। ६. धूयं वा धूवेज्ज, धूयं सोहेज वा, 'धूएज वा पधूएज्ज वा' ये तीन पाठान्तर इसके मिलते हैं। ७. इसके स्थान पर सर्वत्र से सिया परो' पाठान्तर मिलता है।