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द्वादश अध्ययन : सूत्र ६८९
उत्कण्ठापूर्वक रूप-दर्शन से हानियाँ
(१) रूप एवं दृश्य की लालसा तीव्र हो जाती है,
(२) मनोज्ञ रूप पर राग और अमनोज्ञ पर द्वेष पैदा होता है,
(३) साधक में अजितेन्द्रियता बढ़ती है,
(४) स्वाध्याय, ध्यान आदि से मन हट जाता है,
(५) पतंगे की तरह रूप लालसा ग्रस्त व्यक्ति अपनी साधना को चौपट कर देता हैं,
(६) नैतिक एवं आध्यात्मिक पतन हो जाता है,
(७) रूपवती - सुन्दरियों एवं सुन्दर सुरूप वस्तुओं को प्राप्त करने की लालसा जागती है ।
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गंथमाणि आदि शब्दों की व्याख्या -गंथिमाणि - गूंथे हुए फूल आदि से बने हुए स्वस्तिक आदि। वेढिमाणि वस्त्रादि से बनी हुई पुतली आदि वस्तुएँ। पूरिमाणि – जिनके अन्दर कुछ भरने से पुरुषाकार बन जाते हैं, ऐसे पदार्थ | संघाइमाणि – अनेक एकत्रित वर्णो से निर्मित 'चोलक' आदि। 'चक्खुदंसणपडियाए' – आँखों से देखने की इच्छा से |
॥ बारहवाँ अध्ययन, रूप- सप्तक समाप्त ॥
१. आचारांग वृत्ति पत्रांक ४१५