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________________ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध शब्द-सप्तक अध्ययन में शब्दश्रवण-निषेध के रूप में वर्णित हैं। सिर्फ वाद्य शब्दों को छोड़ा गया है। संक्षेप में, उत्कण्ठापूर्वक रूप-दर्शन-निषेध सूत्र इस प्रकार फलित होते हैं - ३४० (१) केतकी क्यारियों, खाइयों आदि के रूप को देखने का, (२) नदी तटीय कच्छ, गहन, वन आदि पदार्थों के रूप को देखने का, (३) ग्राम, नगर, राजधानी आदि के रूपों को देखने का, (४) आराम, उद्यान, वनखण्ड, देवालय आदि पदार्थों के रूप देखने का, (५) अटारी, प्राकार, द्वार, राजमार्ग आदि स्थानों के रूप देखने का, (६) नगर के त्रिपथ, चतुष्पथ आदि के रूप देखने का, (७) महिषशाला, वृषभशाला आदि विविध स्थानों के रूप देखने का, (८) विविध युद्ध क्षेत्रों के दृश्य देखने का, (९) आख्यायिकस्थानों, घुड़दौड़, कुश्ती आदि द्वन्द्वस्थानों के दृश्य देखने का, (१०) वर-वधू मिलन- स्थान, अश्वयुगलस्थान आदि विविध स्थानों के दृश्य देखने का, (११) कलहस्थान, शत्रु राज्य, राष्ट्र विरोधी स्थान आदि के रूपों को देखने का, (१२) किसी वस्त्र - भूषणसज्जित बालिका के, तथा मृत्युदण्ड वेष में अपराधी पुरुष के जुलूस आदि को देखने का (१३) अनेक महास्रव के स्थानों को देखने का, (१४) महोत्सव स्थलों एवं वहाँ होने वाले नृत्य आदि देखने का, मन से जरा भी विचार न करे । १ यद्यपि चूर्णिकार ने रूप- सप्तक अध्ययन को १२ वें अध्ययन न मानकर ११ वें अध्ययन में माना है, इन विविध पाठों की चूर्णि में इस बात के प्रबल संकेत मिलते हैं । अतः वहाँ सर्वत्र 'कण्णसवणपडियाए' के बदले 'चक्खुदंसणपडियाए' पाठ मिलता है। निशीथसूत्र के बारहवें उद्देशक में भी ये सब पाठ देकर 'चक्खुदंसणपडियाए' अन्त में दिया गया है। २ साथ ही अन् ६८७ सूत्र के अनुसार यहाँ भी रूपदर्शन-निषेध का उपसंहार समझना चाहिए । १. आचारांग सूत्र वृत्ति ४१४ के आधार पर २. (क) देखें आचारांग चूर्णि मू० पा० टिप्पण (ख) निशीथचूर्णि उद्देशक १२ पृ० २०१, २०३, ३४४-३४५, ३४६, ३४७, ३४८, ३४९, ३५० १. जे वप्पाणि वा पवाओ सुहाकम्मंतानि कट्ठकम्मंतानि वा .... भवणगिहाणि वा कच्छाणि वा... सरसरपंतीओ वा चक्खुदंसणपडियाए गच्छति । २. जे भिक्खू गामाणि वा रायधाणीमहाणि वा चक्खुदंसणपडियाए गच्छति । ३. जे आसकरणाणि वा ... सूकरकरणाणि वा, हयजुद्धाणि वा णिउद्धाणि वा उट्ठायुद्धाणि वा चक्खुदंसणपडियाए गच्छति । ४. जे भिक्खू विरूवरूवेसु महुस्सवेसु इत्थीणि वा पुरिसाणी वा .... मोहंताणि वा परिभुंजंताणि वा चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेइ । ५. भिक्खू इहलोइएस वा रूवेसु, परलोइएसु वा रूवेसु दिट्ठेसु वा रूवेसु अमणुण्णेसु वा रूवेसु सज्जइ वा रज्जइ वा गिज्झइ वा अज्झोवव्वज्जइ वा ।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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