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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
एगारसमं अज्झयणं 'सद्दसत्तिक्कओ' शब्दसप्तक : एकादश अध्ययन : चतुर्थ सप्तिका ?
वाद्यादि शब्द श्रवण-उत्कण्ठा-निषेध
६६९. से भिक्खू वा २ मुइंगसद्दाणि वा नदीसद्दाणि वा झल्लरीसद्दाणि वा अण्णतराणि वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई वितताई सद्दाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए।
६७०. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाइं २ सद्दाइं सुणेति, तंजहा- वीणासहाणि वा विवंचिसदाणि वा बद्धीसगसद्दाणि वा तुणयसद्दाणि वा पणवसहाणि वा तुंबवीणियसद्दाणि वा ढकुणसहाणि ४ अण्णतराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाणि सद्दाणि तताई ५ कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए।
६७१. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाइं सद्दाइं सुणेति, तंजहा- तालसद्दाणि वा कंसतालसहाणि वा लत्तियसदाणि वा गोहियसद्दाणि वा किरिकिरिसहाणि वा अण्णतराणि वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं तालसहाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेजा गमणाए।
६७२. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाइं सदाइं सुणंति, तंजहा–संखसहाणि वा वेणुचूर्णिकार ने 'रूपसप्तककः' नामक पंचम अध्ययन को चतुर्थ माना है और 'शब्दसतैककः' को पंचम। अतः शब्दसप्तैकक में चूर्णिकार सम्मत पाठ इतना ही है- 'एवं सद्दाई पि संखादीणि तताणि, वीणा ववीसमुग्घोसादीणि वितताणि, बंभादि घणाई, उजउललकुडा। सुसिराइंबंसपव्वगादि पव्वादीणि। सदं सुणोत्ताणं जितो जाति पिक्खतो वणिजतेसु वा रागादीणि जाति । पंचमं सत्तिक्कगं समत्तं।' अर्थात्- इसी प्रकार शब्दों के सम्बन्ध में जान लेना चाहिए। शंखादि शब्द तत हैं, वीणा, ववीस, उद्घोष आदि के शब्द वितत हैं, भंभा आदि घन, उज्वकुल आदि ताल शब्द । शुषिर बाँस, पर्वकपर्वादि के शब्द। किसी शब्द को सुनकर रागादि को प्राप्त करता है, अथवा रूप आदि को देख कर उसका वर्णन करने से
राग-द्वेष आदि होते हैं। इस प्रकार पंचम सप्तैकक समाप्त । २. सू. ६६९ का संक्षेप में अर्थ वृत्तिकार के शब्दों में— ‘स पूर्वाधिकृतो भिक्षुर्यदि वतत-तत-घन-शुषिर
रूपांश्चतुर्विधानातोद्यशब्दान् श्रृणुयात् ततस्तच्छ्वणप्रतिज्ञया नाभिसंधारयेद् गमनाय, न तदाकर्णनाय गमनं
कुर्यादित्यर्थः।' इसका भावार्थ विवेचन में दिया जा चुका है। ३. 'अहावेगतियाई' के बदले पाठान्तर है-अहावेगयाइं। . ४. ढकुणसद्धाणि के बदले पाठान्तर है-'ढकुलसद्दाणि, ढंकुणसद्दाणि।' ५. ततं का अर्थ वृत्तिकार ने किया है-ततं वीणा-विपंची-बब्बीसकादि तंत्रीवाद्यम्।