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________________ दशम अध्ययन : सूत्र ६६८ ३२५ गोप्पहेलियासु–जहाँ नई गायों को बाँटा (गवार, खली आदि) चटाया जाता है, उन स्थानों में। गवाणीसु- गोचरभूमियों में। सपाततं- स्वपात्रक, इसका अपभ्रंश पाठ मिलता है सवारकं-वारक का अर्थ उच्चारार्थ मात्रक- भाजन। २ निशीथसूत्र में साधुओं को रात्रि या विकाल में शौच की प्रबल बाधा हो जाने पर उसके विसर्जन की विधि बताई है, कि स्वपात्रक लेकर या वह न हो तो दूसरे साधु से माँग कर उसमें विसर्जन करे किन्तु उसका परिष्ठापन वह सूर्योदय होने पर एकान्त अनाबाध, आवागमनरहित निरवद्य, अचित्त स्थान में करे। प्रस्तुत सूत्र में दैवसिक-रात्रिक सामान्य विधि बताई है कि अपना या दूसरे साधु का पात्रक लेकर वैसे एकान्त निर्दोष स्थण्डिल पर मल-मूत्र विसर्जन करे या उसका परिष्ठापन करे। ३ ६६८. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीय वा सामाग्गियं जं सव्वढेहिं जाव' जएज्जासि त्ति बेमि॥ ६६८. यही (उच्चार-प्रस्रवण व्युत्सर्गार्थ स्थण्डिलविवेक) उस भिक्षु या भिक्षुणी का आचार सर्वस्व है, जिसके आचरण के लिए उसे समस्त प्रयोजनों से ज्ञानादि सहित एवं पांच समितियों से समित होकर सदैव-सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए। ॥दसम अज्झयणं समत्तं॥ १. णविआ गोलेहिया जत्थ गावीओ लिहंति। ऐतिसिं चेव ठाणाणि दोसा। २. (क) निशीथ सूत्र उ.३ से तुलना करें चूर्णि पृ० २२५ (ख) आचारांग वृत्ति पत्रांक ४१० तुलना करें-निशीथ-उ०३ चूर्णि पृ० २२६ ३. (क) आचारांग चूर्णि मू० पा० टि० पृ० २३८-२३९ (ख) आचा. वृत्ति पत्रांक ४१० (ग) तुलना करें-निशीथ उ०३, निशीथचूर्णि पृ० २२७-२२८ ४. किसी-किसी प्रति में 'सव्वद्वेहि पाठ नहीं है। ५. यहाँ'जाव' शब्द से सू० ३३४ के अनुसार 'सब?हिं' से 'जएजासि' तक का पाठ समझें।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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