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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
'णदिआयतणेसु' इत्यादि पदों के अर्थ –णदि आयतणेसु-नद्यायतन-तीर्थस्थान, जहाँ लोग पुण्यार्थ स्नानादिक करते हैं। पंकायतणेसु-जहाँ पंकिलप्रदेश में लोग धर्म-पुण्य की इच्छा से लोटने आदि की क्रिया करते हैं । ओघायतणेसु-जो जलप्रवाह या तालाब के जल में प्रवेश का स्थान पूज्य माना जाता है, उनमें। सेयणपथे-जल-सिंचाई का मार्ग-नहर या नाले में। निशीथ चूर्णि में भी इस प्रकार का पाठ मिलता है। वच्चं - पत्ते, फूल, फल आदि वृक्ष से गिरने पर जहाँ सड़ाये या सुखाए जाते हैं, उस स्थान को 'वर्च' कहते हैं। इसलिए डागवच्चंसि, सागवच्चंसि आदि पदों का यथार्थ अर्थ होता है— डाल-प्रधान या पत्र-प्रधान साग को सुखाने या सड़ाने के स्थान में। निशीथ सूत्र में अनेक वृक्षों के वर्चस् वाले स्थान में मल-मूत्र परिष्ठापन का प्रायश्चित्त विहित है। असणवणंसि— अशन यानी बीजक वृक्ष के वन में। पत्तोवाएसु–पत्रों से युक्त पान (ताम्बूल नागरबेल) आदि वनस्पति वाले स्थान में। इसी तरह पुष्फोवएसु आदि पाठों का अर्थ समझ लेना चाहिए। निशीथ सूत्र में इस सूत्र के समान पाठ मिलता है।
अणावाहंसि के दो अर्थ मिलते हैं— अनापात और अनाबाध । अनापात का अर्थ हैजहाँ लोगों का आवागमन न हो। अनाबाध का अर्थ है- जहाँ किसी प्रकार की रोकटोक न हो, सरकारी प्रतिबन्ध न हो। इंगालदाहेसु– काष्ठ जला कर जहाँ कोयले बनाये जाते हों, उन पर। खारडाहेसु-जहाँ जंगल और खेतों में घास, पत्ती आदि जला कर राख बनाई जाती है। मडयडाहेसु-मृतक के शव की जहाँ दहन क्रिया की जाती है, वैसी श्मशान भूमि में। मडगथभियास–चिता स्थान के ऊपर जहाँ स्तप बनाया जाता है. उन स्थानों में। मडयचेतिएसचिता स्थान पर जहाँ चैत्य-स्थान (स्मारक) बनाया जाता है, उनमें। निशीथ चूर्णि में सूत्र ६६२ के समान पाठ के अतिरिक्त 'मडगगिहंसि वा, मडगछारियंसि वा मडगथूभियंसि, मडगासयंसि वा मडगलेणंसि, मडगथंडिलंसि वा मडगवच्चंसि वा उच्चारपासवणं परिट्टवेई . .. ।' इत्यादि पाठ मिलता है। इनका अर्थ स्पष्ट है। तात्पर्य यह है कि मृतक से सम्बन्धित गृह, राख, स्तूप, आश्रय, लयन (देवकुल), स्थण्डिल, वर्चस् इत्यादि पर मल-मूत्र विसर्जन निषिद्ध है। १. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक ४१०
(ख) आचारांग चूर्णि मू० पा० टि० पृ० २३७ (ग) निशीथ सूत्र उ० ३ के पाठ से तुलना—'जे भिक्खू नई आययणंसि वा पंकाययणंसि वा य....... (ओघा? पणगा?) य यणंसि वा, सेयणपहंसि वा...।' सेयणपहो तु णिक्का, सुकंति फला जहि वच्चं॥-भाष्य गा० १५३९ पृ० २२५-२२६ (घ) 'वच्चं नाम जत्थ पत्ता पुष्फा फला वा सुक्काविजंति' - आचा० चूर्णि मू० पा० टि० पृ० २३८ (च) निशीथसूत्र तृतीय उद्देशक में उक्त पाठ की तुलना करें-'जे भिक्खू उंबरवच्चंसि डागवच्चंसि वा सागवच्चंसि वा मूलगवच्चंसि वा कोत्यंभरिवच्चंसि वा ... इक्खुवर्णसि वा. चंपकवणंसि वा चूयवणंसि वा अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु पत्तोवएसु पुष्फोवएसु फलोवएसु बीओवएसु उच्चारपासवणे परिट्ठवेई पृ० २२६ । ---- उंबरस्स फला जत्थ गिरितडे उप्पविजंति तं उंबरवच्चं भण्णति।' (छ) वच्च' शब्द पुरीष (उच्चार) अर्थ में भी आगमों में प्रयुक्त हुआ है। विनयपिटक में भी वच्चकुटी. (संडास) शौचस्थान के अर्थ में अनेक बार प्रयुक्त हुआ है।