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________________ २७७ अवग्रह-प्रतिमा : सप्तम अध्ययन प्राथमिक o । आचारांग सूत्र (द्वितीय श्रुत स्कन्ध) के सातवें अध्ययन का नाम 'अवग्रह प्रतिमा' है। 'अवग्रह' जैन शास्त्रों का पारिभाषिक शब्द है। यों सामान्यतया इसका अर्थ —'ग्रहण करना' होता है। प्राकृत शब्द कोष में 'अवग्रह' शब्द के ग्रहण करना, अवधारण, लाभ, इन्द्रिय द्वारा होने वाला ज्ञानविशेष, ग्रहण करने योग्य वस्तु, आश्रय, आवास, स्वस्वामित्व की या स्वाधीनस्थ वस्तु, देव (सौधर्मेन्द्र) तथा गुरु आदि से आवश्यकतानुसार यावित् मर्यादित भूभाग या स्थान, परासने योग्य भोजन एवं अनुज्ञापूर्वक ग्रहण करना आदि अर्थ मिलते हैं। १ प्रस्तुत सूत्र में मुख्यतया चार अर्थों में वह अवग्रह शब्दप्रयुक्त हुआ है(१) अनुज्ञापूर्वक ग्रहण करना (२) ग्रहण करने योग्य वस्तु, (३) जिसके अधीनस्थ जो-जो वस्तु है, आवश्यकता पड़ने पर उससे उस वस्तु के उपयोग करने की आज्ञा माँगना; तथा (४) स्थान या आवासगृह, अथवा मर्यादित भूभाग। २ 'अवग्रह' चार प्रकार का है - १. द्रव्यावग्रह, २. क्षेत्रावग्रह, ३. कालावग्रह और ४. भावावग्रह। द्रव्याग्रह के तीन प्रकार (सचित्त, अचित्त, मिश्र) हैं। क्षेत्रावग्रह के भी सचित्तादि तीन भेद हैं, अथवा ग्राम, नगर, राष्ट्र, अरण्य आदि अनेक भेद हैं। 0 00 0000 कालावग्रह के ऋतुबद्ध और वर्षाकाल ये दो भेद हैं। भावावग्रह- मतिज्ञान के अर्थावग्रह, व्यंजनावग्रह आदि भेद हैं। प्रस्तुत अध्ययन में द्रव्यादि तीन अवग्रह विविक्षित हैं, भावावग्रह नहीं। अपरिग्रही साधु को जब कभी आहार, वसति (आवास) वस्त्र, पात्र या अन्य धर्मोपकरण आदि के ग्रहण का परिणाम (विचार) होता है तब वह ग्रहण-भवावग्रह होता है। १. 'पाइअ-सद्द-महण्णवो' पृ. १९७,१४३ २. आचारांग मूलपाठ तथा वृत्ति पत्रांक ४०२
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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