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________________ २७६ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध उस प्रकार के पर-हस्तगत, पर-पात्रगत सचित्त जल को अप्रासुक मान कर न ले। .....'' किन्तु यहाँ चूर्णिकार का आशय भिन्न है, उसके अनुसार यों अर्थ होता है-"साधु पात्र के लिये गृहस्थ के यहाँ जाए तब गृहस्थ पात्र खाली न होने के कारण घर में से उस पात्र को लाकर उसमें सचित्त जल (अधिकांशतः) निकाल कर उस पात्र को देने लगे तो वह उस पर-हस्तगत सचित्तजल संस्पृष्ट पात्र को अप्रासुक जान कर ग्रहण न करे।" यह अर्थ प्रकरण संगत प्रतीत होता है।' विहार-समय पात्र विषयक विधि-निषेध ६०५. से भिक्खु वा २ गाहावतिकुलं पविसित्तुकामे सपडिग्गहमायाए गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाए पविसेज वा णिक्खमेज वा, एवं बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा गामागुणामं [वा] दूइजेजा, तिव्वदेसियादि जहा बितियाए वत्थेसणाए २ णवरं एत्थ पडिग्गहो। ६०५. साधु या साध्वी गृहस्थ के यहाँ आहारादि लेने के लिये प्रवेश करना चाहे तो अपने पात्र साथ लेकर वहाँ आहारादि के लिए प्रवेश करे या उपाश्रय से निकले। इसी प्रकार स्व-पात्र लेकर वस्ती से बाहर स्वाध्यायभूमि या शौचार्थ स्थण्डिलभूमि को जाए, अथवा रामानुग्राम विहार करे। तीव्र वर्षा दूर-दूर तक हो रही हो यावत् तिरछे उड़ने वाले त्रसप्राणी एकत्रित हो कर गिर रहे हों, इत्यादि परिस्थितियों में जैसे वस्त्रैषणा के द्वितीय उद्देशक में निषेधादेश है, वैसे ही यहाँ भी समझना चाहिए। विशेष इतना ही है कि वहाँ सभी वस्त्रों को साथ में लेकर जाने का निषेध है, जबकि यहाँ अपने सब पात्र लेकर जाने का निषेध है। ६०६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वढेहिं सहितेहिं सदा जएजासि त्ति बेमि। ६०६. यही (पात्रैषणा विवेक अवश्य ही) साधु साध्वी का समग्र आचार है, जिसके परिपालन के लिए प्रत्येक साधु-साध्वी को ज्ञानादि सभी अर्थों में प्रयत्नशील रहना चाहिए। ऐसा मैं कहता ॥द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ ॥'पाएसणा' षष्ठमध्ययनम् समाप्तं ॥ १. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक ४००-४०१ (ख) आचारांग चूर्णि मू. पा. टि. पृ. २१७ के आधार पर २. 'बितियाए' के बदले पाठान्तर है-'बीतीयाए''बीयाए'। अर्थ एक-सा है। ३. 'जहा बितियाए वत्थेसणाए' का तात्पर्य है— जैसे वस्त्रैषणा के द्वितीय उद्देशक सूत्र ५८२ में वर्णन है, वैसे ही यहाँ समझ लेना चाहिए। ४. 'एयं ' के बदले कहीं-कहीं एवं' या 'एतं' पाठान्तर मिलता है।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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