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________________ छठा अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र ५९४-५९५ २६७) . (१) तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा- से भिक्खू व २ उद्दिसिय २ पायं जाएजा, तंजहा— लाउयपायं वा दारुपायंवा मट्टियापायंवा, तहप्पगारं पायंसयंवा णं जाएजा जाव' पडिगाहेज्जा। पढमा पडिमा। (२) अहावरा दोच्चा पडिमा- से भिक्खू वा २ पेहाए पायं जाएजा, तंजहा - गाहावई वा जाव'कम्मकरी वा, से पुव्वामेव आलोएज्जा, आउसो। ति वा, भगिणी! ति वा दाहिसिमे एत्तो अण्णतरं पायं, तंजहा–लाउयपायंवा ३,३ तहप्पगारं पायंसयंवा णंजाएज्जा जाव पडिगाहेजा। दोच्चा पडिमा। (३) अहावरा तच्चा पडिमा- से भिक्खूवा २ से जं पुण पायं जाणेज्जा संगतियं वा वेजयंतियं वा, तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाव५ पडिगाहेजा। तच्चा पडिमा। (४) अहावरा चउत्था पडिमा सोभिक्खू वा २ उज्झियधम्मियं पादं जाएज्जा जं चऽण्णे बहवेसमण-माहण जाव वणीमगाणवकंखंति, तहप्पगारं पायं सयं वाणं जाएज्जा" जाव पडिगाहेजा। चउत्था पडिमा। . ५९५. इच्चताणं चउण्हं पडिमाणं अण्णतरं पडिमं जहा पिंडेसणाए। ५९४. इन पूर्वोक्त दोषों के आयतनों (स्थानों) का पत्यिाग करके पात्र ग्रहण करना चाहिए, साधु को चार प्रतिमा पूर्वक पात्रैषणा करनी चाहिए। [१] उन चार प्रतिमाओं में से पहली प्रतिमा यह है कि साध या साध्वी कल्पनीय पात्र का नामोल्लेख करके उसकी याचना करे, जेसे कि तूम्बे का पात्र, या लकड़ी का पात्र या मिट्टी का पात्र; उस प्रकार के पात्र की (गृहस्थ से) स्वयं याचना करे, या फिर वह स्वयं दे और वह प्रासुक और एषणीय हो तो प्राप्त होने पर उसे ग्रहण करे। यह पहली प्रतिमा है। १. यहाँ जाव' शब्द से 'जाएजा' से 'पडिगाहेज्जा' तक का पाठ सूत्र ४०९/३ के अनुसार समझें। २. यहाँ जाव' शब्द से 'गाहावई' से 'कम्मकरी' तक का पाठ सू. ३५० के अनुसार समझें। ३. यहाँ लाउयपायं के आगे ३ का अंक 'दारुपायं वा मट्टियापायं वा' पाठ का सूचक है। ४. (क) चर्णिकार के शब्दों में -"संगतियं मत्तओ,वेजतियं पडिग्गहओ। अहावा संगतियं बे पादा वारावारएणं वा तत्थेगं देति जत्थ पवयणदोसो नत्थि। वेजयंतियं णाम जत्थ अब्भरहियस्स-रायादिणो उस्सवे कालकिच्चे वा भजिया हुडं वा छोढ़ णिज्जति।" (ख) वृत्तिकार के शब्दों में - "संगइयं ति दातुः स्वांगिकं परिभुक्तप्रायम् वेजयंतियं ति द्वित्रेषु पात्रेषु पर्यायेणोपभुज्यमानं पात्रं याचेत।" इनका अर्थ विवेचन में देखें। ५. यहाँ 'जाव' शब्द से 'सयं वा णं' से 'पडिग्गाहेज्जा' तक का पाठ सूत्र ४०९/३ के अनुसार समझें। ६. यहाँ 'जाव' शब्द से 'समण-माहणं' से 'वणीमगा' तक का पाठ सूत्र ४०९/७ के अनुसार समझें। ७. यहाँ 'जाव' शब्द सूत्र ४०९/३ के अनुसार 'जाएजा' से 'पडिगाहेजा' तक पाठ का सूचक है। ८. 'जहापिंडेसणाए' से यहाँ शेष समग्र पाठ पिण्डैषणाध्ययन के ४०९ सूत्र के अनुसार समझें।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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