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________________ २६६ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध (त्रिलोहा) के धातु के पात्र, मणि, काँच और कांसे के पात्र, शंख और सींग के पात्र, दांत के पात्र, वस्त्र के पात्र, पत्थर के पात्र, या चमड़े के पात्र, दूसरे भी इसी तरह के नानाप्रकार के महा-मूल्यवान पात्रों को अप्रासुक और अनेषणीय जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे। __५९३. साधु या साध्वी फिर भी उन पात्रों को जाने, जो नानाप्रकार के महामूल्यवान् बन्धन वाले हैं, जैसे कि वे लोहे के बन्धन हैं, यावत् चर्म-बंधनवाले हैं, अथवा अन्य इसी प्रकार के महामूल्यवान् बन्धनवाले हैं, तो उन्हें अप्रासुक और अनेषणीय जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे। विवेचन–महामूल्यवान् एवं बहुमूल्य बन्धनवाले पात्रों का ग्रहण-निषेध- प्रस्तुत दो सूत्रों में उन पात्रों के ग्रहण करने का निषेध किया है, जो या तो धातु के हैं, या शंख, मणि, काँच, चर्म, दांत, और सींग आदि बहुमूल्य वस्तुओं से बने हुए हैं, या उनके बन्धन भी इन बहुमूल्य वस्तुओं के बने हुए हैं। इन बहुमूल्य पात्रों को ग्रहण करने के निषेध के पीछे निम्नोक्त कारण हो सकते हैं (१) चुराये जाने या छीने जाने का भय, (२) संग्रह करके रखने की संभावना, (३) क्रयविक्रय या अदला-बदली करने की संभावना (४) इन बहुमूल्य पात्रों लिए धनिक की प्रशंसा, चाटुकारी आदि की संभावना (५) इन पर आसक्ति या ममता-मूर्छा और खराब पात्रों पर घृणा आने की संभावना, (६) कीमती पात्र ही लेने की आदत (७) इन पात्रों को बनाने तथा टूटने- फूटने पर जोड़ने में बहुत आरम्भ होता है, (८) शंख, दांत, चर्म आदि के पात्रों के लिए उन- उन जीवों की हिंसा की संभावना, (९) साधर्मिकों के साथ प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या एवं दूसरों को उपभोग के लिए न. देने की भावना। इसीलिए निशीथ सूत्र में २ इस प्रकार पात्र बनाने, बनवाने और बनाने का अनुमोदन करने वाले साधु-साध्वी के लिए प्रायश्चित का विधान है। चम्मपायाणि ३ का अर्थ है – चमड़े की कुप्पी आदि। चेलपायाणि- कपड़े का खलीता, डब्बा या थैलीनुमा पात्र।४ पात्रैषणा की चार प्रतिमाएँ ५९४. इच्चेताइं आयतणाई उवातिक्कम्म अह भिक्खू जाणेजा चउहि पडिमाहिं पायं एसित्तए। १. आचारांग मूल तथा वृत्ति पत्रांक ३९९ के आधार पर निशीथ सूत्र ११/१ में देखिए पाठ-"जे भिक्खू अयपायाणि वा तउय-तंब-सीस-हिरण्ण-सुवण्ण-रीरियाहारउड-मणि-काय-कंस-अंक-संख-सिंग-दंत-सेल-चेल-चम्मपायाणि वा अण्णतराणि वा तहप्पगाराइं पाताई करेति..।" ३. आचारांगचूर्णि-'चम्मपादं' - चम्मकुतुओ'!-मू. पा. टि. पृ. २१४ ४. निशीथ चूर्णि ११/१ में 'चेलमयं पसेवओ खलियं वा पडियाकारं कज्जइ।'
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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