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पंचम अध्ययन
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बीओ उद्देसओ
द्वितीय उद्देशक वस्त्र-धारण की सहज विधि :
५८१.से भिक्खूवा २ अहेसणिज्जाइंवत्थाई जाएजा, अहापरिग्गहियाइं वत्थाइंधारेजा, णोधोएजा,णो रएजा,णो धोतरत्ताइंवत्थाइंधारेज्जा, अपलिउंचमाणे गानंतरेसु, ओमचेलिए। एतं खलु वत्थधारिस्स सामग्गियं।
५८१. साधु या साध्वी वस्त्रैषणा समिति के अनुसार एषणीय वस्त्रों की याचना करे, और जैसे भी वस्त्र मिलें और लिए हों, वैसे ही वस्त्रों को धारण करे, परन्तु (विभूषा के लिए) न उन्हें धोए, न रंगे और न ही धोए हुए तथा रंगे हुए वस्त्रों को पहने। उन (बिना उजले धोए या रंगे) साधारण-से वस्त्रों को न छिपाते हुए ग्राम-ग्रामान्तर में समतापूर्वक विचरण करे। यही वस्त्रधारी साधु का समग्र आचार सर्वस्व है।
विवेचन-वस्त्र-धारण का सहज विधान- प्रस्तुत सूत्र में वस्त्र-धारण के सम्बन्ध में शास्त्रकार ने ५ बातों की ओर साधु-साध्वी का ध्यान खींचा है -
(१) सादे एवं साधारण अल्पमूल्य वाले एषणीय वस्त्र की याचना करे।
(२) जैसे भी सादे एवं साधारण-से वस्त्र मिलें या ग्रहण करे, वैसे ही स्वाभाविक वस्त्रों को सहजभाव से वह पहने-ओढे।
(३) उन्हें रंग-धोकर या उज्ज्वल एवं चमकीले-भड़कीले बनाकर न पहने। (४) ग्राम-नगर आदि में विचरण करते समय भी उन्ही साधारण-से वस्त्रों में रहे। (५) उन्हें छिपाए नहीं।
'अपलिउंचमाणे' आदि पदों के अर्थ- अपलिउंचमाणे- नहीं छिपाते हुए।ओमचेलिए-स्वल्प तथा तुच्छ (साधारण) वस्त्रधारी।
णो धोएज्जा, णो रोएज्जा, णो धोत्तरत्ताई वत्थाई धारेजा-यह निषेधसूत्र साज-सज्जा, विभूषा, शृंगार, तथा छैल छबीला बनने की दृष्टि से है। प्रदर्शन या अच्छा दिखने की दृष्टि से वस्त्रों को विशेष उज्ज्वल करना निषिद्ध है, श्वेतवस्त्रधारी के लिए वस्त्र रंगना भी निषिद्ध है, किन्तु कई वस्त्र का रंग स्वाभाविक मटमैला या हल्का पीला-सा होता है, उन्हें धारण करने में कोई दोष नहीं १. बौद्ध श्रमण पहले गोबर व पीली मिट्टी से वस्त्र रंगते थे। वे दुर्वर्ण हो जाते, तब बुद्ध ने छाल का रंग, पत्ते का रंग व पुष्प-रंग से वस्त्र रंगने की अनुमति दी।
-विनयपिटक पृ. २७७-७८