________________
पंचम अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र ५६९-५७१
२४९
५६८. कदाचित् वह गृहस्वामी (साधु के द्वारा याचना करने पर) वस्त्र (घर से लाकर) साधु को दे, तो वह पहले ही विचार करके उससे कहे-आयुष्मन् गृहस्थ! या बहन! तुम्हारे ही इस वस्त्र को मैं अन्दर-बाहर चारों ओर से (खोलकर) भलीभाँति देखूगा, क्योंकि केवली भगवान् कहते हैं - वस्त्र को प्रतिलेखना किये बिना लेना कर्मबन्धन का कारण है। कदाचित् उस वस्त्र के सिरे पर कुछ बँधा हो, कोई कुण्डल बँधा हो, या धागा, चाँदी, सोना, मणिरत्न, यावत् रत्नों की माला बँधी हो, या कोई प्राणी, बीज या हरी वनस्पति बँधी हो। इसीलिए भिक्षुओं के लिए तीर्थंकर आदि आप्तपुरुषों ने पहले से ही इस प्रतिज्ञा, हेतु, कारण और उपदेश का निर्देश किया है कि साधु वस्त्रग्रहण से पहले ही उस वस्त्र की अन्दर-बाहर चारों ओर से प्रतिलेखना करे।
विवेचन- वस्त्र लेने से पूर्व भलीभाँति देखभाल लें- प्रस्तुत सूत्र में वस्त्र ग्रहण करने से पूर्व एक विशेष सावधानी की ओर संकेत किया है, वह है वस्त्र को पहले अन्दर-बाहर सभी कोनों से अच्छी तरह देख-भाल कर लें। बिना प्रतिलेखन किये वस्त्र ले लेने से निम्नलिखित खतरों की सम्भावना है—(१) वस्त्र के पल्ले में कोई कीमती चीज बंधी हो, साधु को उसे रखने से परिग्रह दोष लगेगा, (२) गृहस्थ की वह चीज गुम हो जाने से उसे साधु पर शंका होगी, (३)वस्त्र बीच में से फटा हो तो फिर साध का उस वस्त्र के ग्रहण करने का प्रयोजन सिद्ध न होगा. (४) वस्त्र को गृहस्थ ने साधु के लिये विविध द्रव्यों से सुवासित कर रखा हो, या उसमें बीच में फूलपत्ती आदि या चाँदी सोने के बेलबूटे आदि किये हों। (५) उस वस्त्र में दीमक, खटमल, , चींटी आदि कोई जीव लगा हो, बीज बँधे हों या हरी वनस्पति बंधी हो तो जीव-हिंसा की संभावना है। (६ ) किसी ने द्वेषवश उस वस्त्र पर विष लगा दिया हो, जिसे पहनते ही प्राणवियोग की संभावना हो। (७) उस वस्त्र की अपेक्षित लम्बाई-चौड़ाई न हो। इसीलिए साधु को उक्त वस्त्र अपनी निश्राय में लेने से पूर्व गृहस्थ से कहना चाहिए -"तुमंचेवणंसंतिबंबत्थं अंतोअंतेण घडिलेहिस्सामि।" - अर्थात् मैं प्रतिलेखन करता हूँ कि जब तक यह वस्त्र तुम्हारे स्वामित्व का या तुम्हारा है...। २ ग्राह्य-अग्राह्य वस्त्र-विवेक
५६९. से भिक्खू वा २ से जं पुण वत्थं जाणेजा सअंडं जाव संताणं तहप्पगारं बत्थं अकासुयं जाव णो पडिगाहेजा।
५७..से भिक्खु बा २ से जं पुण बत्थं जाणेजा अप्पंडं जाव संतागगं अणलं अभिरं अधुवं अधारणिजं रोइजंतंण रुच्चति,३ तहबगारं बत्थं अफासु जाव णो पडिगाहेजा। १. आचारांग मूल पाठ एवं वृत्ति पत्रांक ३८५ २. आचारांग वृत्ति पत्रांक ३८५ ३. 'ण रुच्चति' के बदले पाठान्तर है-'नो रोइज्ज, नो रोचइ।' अर्थ समान है।