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________________ २४८ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध ५६७. साधु के द्वारा इस प्रकार कहने पर भी बह गृहस्थ कन्द यावत् हरी वस्तु को निकाल कर (विशुद्ध करके) देने लगे तो उस प्रकार के वस्त्र को अप्रासुक एवं अनेषणीय समझ कर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे। विवेचन-विविध अनेषणीय वस्त्रों के ग्रहण का निषेध-सू० ५६१ से ५६७ तक सात सूत्रों में निम्नलिखित परिस्थितियों में वस्त्र ग्रहण करने का निषेध किया गया है - (१) एक दो दिन से लेकर एक मास तक के बाद ले जाने के लिए साधु को वचनबद्ध करके देना चाहे। (२) थोड़ी देर बाद आकर ले जाने के लिए वचनबद्ध करके देना चाहे। (३) या वह वस्त्र साधु को देकर अपने लिए दूसरा वस्त्र बना लेने का विचार प्रकट करे। (४) सुगन्धित द्रव्यों से सुवासित करके (पुरुषान्तरकृत, परिभुक्त या आसेवित बताने की अपेक्षा से) देने का विचार प्रकट करे। (५) ठण्डे या गर्म प्रासुक जल से धोकर देने के विचार प्रकट करे। (६) उसमें पड़े हुए कन्द या हरी आदि सचित्त पदार्थों को निकालकर साफ करके देने का विचार प्रकट करे। (७) तथा वैसा करके देने लगे तो ऐसे अनेषणीय वस्त्र के लेने से हिंसा, पश्चात्कर्म आदि दोषों की सम्भावना है। १ 'संगारे पडिसुणेत्तए' आदि पदों का अर्थ - संगारे - वादा करना, या संकेत करना, . वचनबद्ध होना। संगारवयणे- संकेतवचन, वादे की बात, किसी खास वचन में बंध जाना। पडिसुणेत्तए - स्वीकार करना। २ वस्त्र-ग्रहण-पूर्व प्रतिलेखना विधान ५६८. सिया से परो णेत्ता वत्थं निसिरेजा, से पुत्वामेव आलोएजा-आउसो! ति वा, भइणी ! ति वा, तुमं चेवणं संतियं वत्थं अंतोअंतेण पडिलेहिस्सामि। केवली बूयाआयाणमेयं। वत्थंते ओबद्धं ३ सिया कुंडले वा गुणे वा हिरण्णे वा सुवण्णे वा मणी वा जाव रतणावली वा पाणे वा बीए वा हरिते वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं पुव्वामेव वत्थं अंतोअंतेण पहिलेहेजा। १. आचारांग मूल एवं वृत्ति पत्रांक ३९५ के आधार पर २. (क) आचा० (अर्थागम खण्ड १) पृ० १३१ (ख) पाइअ-सद्द-महण्णवो पृ० ८३४ ३. 'अत्यंते ओबद्ध' के बदले पाठान्तर हैं - 'वत्थेण ओबद्धं', 'वत्थंतेण उबद्धं', 'वत्थंते बद्धे' । अर्थ है-वहाँ वस्त्र के अन्त -किनारे या पल्ले में कोई वस्तु बँधी हो।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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