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________________ पंचम अध्ययन : प्रथम उद्देशक: सूत्र ५५९-५६० २४३ तथा प्रावारक महंगे होने के अतिरिक्त ये बीच-बीच में घूँछे, छिद्रवाले या पोले होते हैं, जिनमें जीव घुस जाते हैं, जिनके मरने की आशंका रहती है तथा प्रतिलेखन भी ठीक से नहीं हो सकता, इन सब दोषों के कारण ये वस्त्र अग्राह्य कोटि में गिनाये हैं । १ वस्त्रैषणा की चार प्रतिमाएं ५५९. इच्चेयाइं आययणाई उवातिकम्म अह भिक्खू जाणेज्जा चउहिं पडिंमाहिं वत्थं एत्तिए । तंजहा - [ १ ] तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा - से भिक्खू वा २ उद्दिसिय २ वत्थं जाएज्जा, - जंगियं वा भंगियं वा साणयं वा पोत्तगं वा खोमियं वा तूलकडं वा, तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा, फासूयं एसणिज्जं लाभे संते जाव पडिगाहेज्जा । [ २ ] अहावरा दोच्चा पडिमा - से भिक्खू वा २ पेहाए २ वत्थं जाएज्जा, तंजहा गाहावती वा जाव कम्मकरी वा, से पुव्वामेव आलोएजा - आउसो ति वा भइणी तिवा दाहिसि मे एत्तो अण्णतरं वत्थं? तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा, फासूयं एसणिज्जं लाभे संते जाव ३ पडिगाहेज्जा । दोच्चा पडिमा । - [ ३ ] अहावरा तच्चा पडिमा — से भिक्खू वा २ सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा, तंजहाअंतरिज्जगं वा उत्तरिज्जगं वा, तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएजा जाव ४ पडिगाहेज्जा । तच्चा पडिमा । [४] अहावरा चंउत्था पडिमा — से भिक्खू वा २ उज्झियधम्मियं वत्थं जाएजा जं चणे बहवे समण-माहण- अतिहि-किवण - वणीमगा णावकंखंति, तहप्पगारं उज्झियधम्मियं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा, फासुयं ५ जाव पडिगाहेज्जा । चउत्था पडिमा । — — १. आचारांग चूर्णि मू० पा० टि० पृ० २०२ कोयव-कंबलपावारादीणि सुसि दोसाय ण गृहीयात् । २. चूर्णि (आचा० ) में इस पाठ की व्याख्या इस प्रकार मिलती है - 'चउरो पडिमा - उद्दिसिय जंगिय - मादी | बितियं पेडाए पुच्छिते भणति - एरिसं । अहवा पेहाए उक्खेव निक्खेव निद्देसं बीयाण उवरिं । ततियाए अंतरिज्जगं साडतो, उत्तरिज्जगं पंगुरणं । अहवा अंतरिज्जगं हेट्ठिपत्थरणं, उत्तरिज्जगं पच्छाओ । उज्झियधम्मियं चउव्विधं दव्वादि आलावगसिद्धं । - • अर्थात् - - चार प्रतिमाएँ हैं - (१) जंगीय आदि चारों में से किसी भी एक प्रकार के वस्त्र को उद्देश्य करके ग्रहण करने का संकल्प । (२) दूसरी प्रतिमा प्रेक्षापूर्वक निश्चित करना, पूछने पर कहना - निक्षेप का निर्देश भी इसके साथ है | (३) तृतीय प्रतिमा में अन्तरीयक वस्त्र, चादर और उत्तरीयक ऊपर लपेटने का, अथवा अन्तरीयक नीचे बिछाने का , उत्तरीयक प्रच्छादन पट । (४) उज्झितधार्मिक के द्रव्यादि चतुर्विध आलापक हैं। (बृहत्कल्प सूत्र वृत्ति पृ० १८० और निशीथ चूर्णि उ० ५ ( पृ० ५६८) में भी इसका उल्लेख है। -- • ऐसा वस्त्र । बीजों पर उत्क्षेप या ३. 'जाव' शब्द से यहाँ 'लाभे संते' से लेकर 'पडिगाहेज्जा' तक का पाठ सू० ४०९ के अनुसार है ।) ४. ५. जाव शब्द से यहाँ इसी सूत्र के [२] विभाग में उल्लिखित पाठ समझना चाहिए। यहाँ 'जाव' शब्द से 'फासुयं' से लेकर 'पडिगाहेज्जा' तक का पाठ सू० ४०९ के अनुसार समझें ।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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