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________________ २४२ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध 'महामूल्य' किसे कहते हैं इस विषय में अभयदेवसूरि ने बताया है - 'पाटलीपुत्र के सिक्के से जिसका मूल्य अठारह मुद्रा (सिक्का-रुपया) से लेकर एक लाख मुद्रा (रुपया) तक हो वह महामूल्य वस्त्र होता है। ___ अण्णतराणि वा तहप्पगाराई - बहुमूल्य एवं चर्म-निर्मित वस्त्र के ये कतिपय नाम शास्त्रकार ने गिनाए हैं। इनके अतिरिक्त प्रत्येक युग में जो भी बहुमूल्य, सूक्ष्म, चर्म एवं रोमों से निर्मित, दुर्लभ तथा महाआरम्भ से निष्पन्न होने वाले वस्त्र प्रतीत हों, उन्हें साधु ग्रहण न करे, सूत्रकार का यह आशय है। 'आइणगाणि' आदि पदों के विशेष अर्थ - आचारांगचूर्णि, निशीथचूर्णि आदि में इन पदों के विशिष्ट अर्थ दिये गए हैं। आइणगाणि– अजिन – चर्म से निर्मित। आयाणितोसलिदेश में अत्यन्त सर्दी पड़ने पर बकरियों के खुरों में सेवाल जैसी वस्तु लग जाती है, उसे : उखाड़कर उससे बनाये जाने वाले वस्त्र । कायाणि-काक देश में कौए की जांघ की मणि जिस तालाब में पड़ जाती है, उस मणि की जैसी प्रभा होती है, वैसी ही वस्त्र की हो जाती है, उन काकमणि रंजित वस्त्रों को काकवस्त्र कहते हैं। खोमियाणि-क्षोम कहते हैं पौंड-पुष्पमय वस्त्र को, अथवा जैसे वट वृक्ष से शाखाएँ निकलती हैं वैसे ही वृक्षों से लंबे-लंबे रेशे निकलते हैं, उनसे बने हुए वस्त्र, दुगुल्लाणि-दुकूल एक वृक्ष का नाम है, उसकी छाल लेकर ऊखल में कूटी जाती है, जब वह भुस्से जैसी हो जाती है तब उसे पानी में भिगोकर रेशे बनाकर वस्त्र निर्माण किया जाता है। पट्टाणि-तिरीड़ वृक्ष की छाल के तन्तु पट्टसदृश होते हैं उनसे निर्मितवस्त्र तिरीड़पट्ट वस्त्र अथवा रेशम के कीड़ों के मुँह से निकलने वाले तारों से बने वस्त्र । २ मलयाणि-मलयदेश (मैसूर आदि) में चन्दन के पत्तों को सड़ाया जाता है, फिर उनके रेशों से बने वस्त्र, पत्तुण्णाणिवल्कल से बने हुए बारीक वस्त्र ३ , देसरागा- जिस देश में रंगने की जो विधि है, उस देश में रंगे हुए वस्त्र, गजलाणि- जिनके पहनने पर विद्युत्गर्जन-सा कड़कड़ शब्द होता है, वे गर्जल वस्त्र। कणगो- सोने को पिघला कर उससे सूत रंगा जाता है, और वस्त्र बनाये जाते हैं। कणगकंताणि- जिनके सोने की किनारी हो, ऐसे वस्त्र। विवग्घाणि-चीते का चमड़ा। कौतप आदि के ग्रहण का निषेध क्यों?— कौतप, कंबल (फारस देश के बने गलीचे) १. (क) स्थानांग वृत्ति, पत्र ३२२ (ख) विनयपिटक (महावग्ग) ८/८/१२ पृ० २९८ में शिविदेश में बने 'सिवेय्यकवस्त्र' का उल्लेख है, जो एक लाख मुद्रा में मिलता था। २. अनुयोगद्वारसूत्र (३७) की टीका के अनुसार - किसी जंगल में संचित किये हुए मांस के चारों ओर एकत्रित कीड़ों से 'पट्ट' वस्त्र बनाये जाते थे। ३. 'पत्रोर्ण' का उल्लेख महाभारत २/ ७८/ ५४ में भी है। -जैन० सा० भा० पृ० २०७ ४. (क) आचारांग चूर्णि म०पा०टि०१० २०३, (ख) निशीर्थ चूर्णि उ०७ पृ० ३९९, ४०० (ग) पाइअ-सद्द-महण्णवो (घ) आचारांग वृत्ति पत्रांक ३९४
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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