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________________ २११ चउत्थं अज्झयणं 'भासजाया' [पढमो उद्देसओ] भाषाजात : चतुर्थ अध्ययन : प्रथम उद्देशक भाषागत आचार-अनाचार विवेक ५२०. से भिक्खू वा २ इमाइं वइ-आयाराई सोच्चा णिसम्म इमाइं अणायाराई अणायरियपुव्वाइं जाणेजा-जे कोहा वा वायं विउंजंति, जे माणा वा वायं विउंजंति, जे मायाए वा वायं विउंजंति, जे लोभा वा वायं विउंजंति, जाणतो वा फरुसं वंदति, अजाणतो वा फरुसं वयंति। सव्वं चेयं सावजं वज्जेज्जा विवेगमायाए- धुवं चेयं जाणेजा, अधुवं चेयं जाणेजा, असणं वा ४ लभिय, णो लभिय, भुंजिय, णो भुंजिय, अदुवा आगतो अदुवा णो आगतो, अदुवा एति, अदुवा णो एति, अदुवा एहिति, अदुवा णो एहिति, एत्थ वि आगते', एत्थ वि णो आगते, एत्थ वि एति, एत्थ वि णो एति, एत्थ वि एहिति, एत्थ वि णो एहिति। ५२०. संयमशील साधु या साध्वी इन वचन (भाषा) के आचारों को सुनकर, हृदयंगम करके, पूर्व-मुनियों द्वारा अनाचरित भाषा-सम्बन्धी अनाचारों को जाने। (जैसे कि ) जो क्रोध से वाणी का प्रयोग करते हैं जो अभिमानपूर्वक वाणी का प्रयोग करते हैं, जो छल-कपट सहित भाषा बोलते हैं, अथवा जो लोभ से प्रेरित होकर वाणी का प्रयोग करते हैं, जानबूझकर कठोर बोलते हैं, या अनजाने में कठोर वचन कह देते हैं -ये सब भाषाएं सावध (स-पाप) हैं, साधु १. 'वइ-आयाराई' के बदले पाठान्तर हैं- वयिआयाराइं, वइयायाराई, वययाराई आदि। अर्थ समान २. 'जे माणा वा वायं विउंजंति' पाठ के बदले पाठान्तर हैं- 'जे माणा वा वएज्जा, जे मायाए वा, ... माया वा, जं माणा वा जे मायाए वा" । अर्थ समान हैं। . माया आदि का तात्पर्य चूर्णिकार के शब्दों में -माया-गिलाणो हं, लोभा- वाणिज्जं करेमाणे। अर्थात् -माया से बोलना-जैसे – 'मैं बीमार हूं'। लोभ से बोलना - वाणिज्य (सौदेबाजी अदला बदली) करता हुआ। ४. धुवं चेयं जाणेज्जा-का तात्पर्य वृत्तिकार के शब्दों में-'ध्रुवमेतद् निश्चितं' वृष्ट्यादिकं भविष्यतीत्येवं जानीयात् । अर्थात्- यह निश्चित है कि वृष्टि आदि होगी ही; इस प्रकार जाने या शर्त लगाए। 'एत्थं वि आगत' का तात्पर्य चूर्णिकार के शब्दों में - 'अस्मिन् एत्थ ग्रामे संखडीए वा' इस गाँव में या इस संखडी (प्रीतिभोज) में।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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