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________________ १९६ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध से भी इस प्रकार के प्रश्न न पूछे। उनके द्वारा न पूछे जाने पर भी वह ऐसी बातें न करे। अपितु संयमपूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करता रहे। विवेचन-विविध विषम मार्ग और साधु का कर्त्तव्य - इन पाँच सूत्रों में साधु के विहार में आने वाले गमन और व्यवहार दोनों दृष्टियों से विषम मार्ग से सावधान करने के लिए सूचनाएँ दी गई हैं, साथ ही साधु को ऐसे ही विषम एवं संकटापन्न मार्ग से जाना ही पड़ जाए और सम्भाव्य संकट आ ही पड़े तो क्या करना चाहिए उसका समाधान भी बता दिया है। अन्य निरापद मार्ग मिल जाए तो वैसे संकटास्पद मार्ग से जाने का निषेध किया है। ऐसे निषेध्य मार्ग मुख्यतया दो प्रकार के हैं—(१) ऊँचे-नीचे, टेढ़े-मेढ़े, उबड़-खाबड़ मार्ग, (२) ऐसे मार्ग, जहाँ सेनाओं के पड़ाव हों, रथ और गाड़ियाँ पड़ी हों, धान्य के ढेर भी पड़े हों। प्रथम मार्ग से अनिवार्य कारणवश जाना पड़े तो वनस्पति का अथवा किसी पथिक के हाथ का सहारा लेने का विधान किया है। चूर्णिकार इस सम्बन्ध में स्पष्टीकरण करते हैं कि जिनकल्पिक मुनि प्रातिपथिक के हाथ की याचना करके उतरते हैं, जबकि स्थविरकल्पी वृक्षादि का सहारा लेकर। दूसरे मार्ग से जाने में सैनिकों द्वारा कुशंका-वश मारपीट की संभावना है, उसे समभावनापूर्वक सहने के सिवाय कोई चारा नहीं। यद्यपि साधु उन्हें भी पहले समझाने और उनका समाधान करने का प्रयत्न करेगा ही। अन्त में सूत्र ५०२ में साधु से साधु धर्म से असम्बद्ध प्रश्न पूछे जाने पर उत्तर न देने का विधान किया गया है। यद्यपि साधु से कोई जिज्ञासु व्यक्ति धार्मिक या आध्यात्मिक प्रश्न पूछे तो उसका उत्तर देना उसका कर्त्तव्य है, किन्तु निरर्थक प्रश्नों के उत्तर देना आवश्यक नहीं। वे अनर्थकारी भी हो सकते हैं। अत: वह व्यर्थ की बातों का न तो उत्तर दे, न ही वह स्वयं किसी से पूछे । ऐसी प्रश्नोत्तरी विकथा, वितण्डा, निन्दा और कलह का रूप भी ले सकती है। इसके अतिरिक्त कई पथिक साधुओं से अपना, देश का तथा वर्ष का भविष्य भी पूछा करते हैं, साधु को न तो ज्ञानी होने का प्रदर्शन करना चाहिए, न ही भविष्य बताना चाहिए। 'वप्पाणि' आदि पदों का प्रासंगिक अर्थ - वप्पाणि -उन्नत भू भाग, टेकरे। फलिहाणि-परिखाएँ — खाइयाँ या नगर के चारों ओर बनी हुई नहरें, पागाराणि- दुर्ग या किले। तोरणाणि- नगर के मुख्य द्वार, अग्गलाणि- अर्गलाएँ — आगल, अग्गलपासगाणि -आगल फंसाने के स्थान। गड्ढाओ-गर्त-गड्डे। दरीओ-गुफाएँ या भू-गर्भ मार्ग। गुच्छाणि - पत्तों का समूह, या फलों के गुच्छे, गुम्माणि- झाड़ियां, गहणाणि-वृक्ष-लताओं के झुंड या वृक्षों के कोटर। पाडिपहिया– सामने से आने वाले पथिक, अभिचारियं - गुप्तचर का १. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक ३८१ के आधार पर, (ख) आचा० चूर्णि मूलपाठ टिप्पणी पृ० १८२ २. व्यवहारसूत्र ४, में 'अभिनिचारियं' शब्द है। वृत्तिकार मलयगिरिसूरि ने 'अभिनिचारिका' का अर्थ किया है-सूत्रानुसार सामुदानिक भिक्षाचारिका करना। -व्यव० उ० ४ वृत्ति पत्र ६०-६२
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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