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________________ तृतीय अध्ययन १८७ बीओ उद्देसओ द्वितीय उद्देशक नौकारोहण में उपसर्ग आने पर : जल-तरण ४८४. से णं परोणावागतो णावागयं वदेजा-आउसंतो समणा! एवं ता तुमं छत्तगं वा जाव चम्मछेदणगं वा गेण्हाहि, एताणि ता तुमं विरूवरूवाणि सत्थजायाणि धारेहि, एयं ता तुमं दारगं वा दारिंगं वा पजेहि, णो से तं परिण्णं परिजाणेजा, तुसिणोओ उवेहेजा। ४८५. से णं परो णावागते णावागतं वदेज्जा २- आउसंतो! एसणं समणे णावाए भंडभारिए ३ भवति, से णं बाहाए गहाय णांवाओ उदगंसि पक्खिवेजा। एतप्पगारं निग्योसं सोच्चा णिसम्म से य चीवरधारी सिया खिप्पामेव चीवराणि उव्वेढेज वा णिव्वेढेज वा, उप्फेसं वा करेजा। ४८६. अह पुणेवं जाणेज्जा - अभिकंतकूरकम्मा खलु बाला बाहाहिं गाहाय णावाओ उदगंसि पक्खिवेजा।से पुव्वामेव वदेजा-आउसंतो गाहावती! मा मेत्तो बाहाए गहाय णावातो उदगंसि पक्खिवह, सयं चेवणं अहं णावातो उदगंसि ओगाहिस्सामि। १. 'पजेहि' का तात्पर्य चूर्णिकार के शब्दों में 'दारगं वा दारिगं वा पजेहि त्ति, भुंजावेहि धरेहि वा णेजा, अम्हे णावाह कम्मंकरे।' अर्थात् बालक या बालिका को पानी पिलाओ, खिलाओ, पकड़े रखो, ले जाओ, हम नौका पर काम करेंगे। २. 'परो णावागते णावागतं वदेजा' का अर्थ वृत्तिकार के शब्दों में - "नौगतस्तत्स्थं साधुमुद्दिश्यापरमेवं ब्रूयात्।" अर्थात् -नौका में बैठा हुआ व्यक्ति नौका में स्थित साधु को उद्देश्य करके दूसरे नौकारोही से ऐसा कहे..." ३. "भंडभारिए" के स्थान पर 'भंडभारिते' पाठान्तर मानकर चूर्णिकार ने व्याख्या की है-"भंडभारिते जहां भंडभारियं ण वा किंचि करेति।" अर्थात् -भाण्ड-वस्तुएँ निर्जीव-निश्चेष्ट होने के कारण केवल भारभूत होती हैं, वे कुछ करती नहीं, वैसे ही यह (साधु) है। ४. उव्वेढेज्जा वाणिव्वेढेज वा के स्थान पर पाठान्तर है-"उवेहेज वा णिवेहेज वा","उवट्टे वा निविट्टिज वा।" अर्थ क्रमशः यों है - (१) उपेक्षा करे, नि:स्पृह हो जाए, (२) उलट दे, निकाल दे। इन पदों का आशय चूर्णिकार के शब्दों में देखिए- "थेरा उव्वेटेंति, जिणकप्पितो उप्फ्रेंसि करेति । उप्फेसो नाम कुडियंडी सीसकरणं।" अर्थात् स्थविरकल्पिक मुनि कपड़े लपेट लेते हैं, जिनकल्पिक मुनि उप्फेसीकरण करते हैं। उप्फेस कहते हैं - बोने की तरह सिर को सिकोड़ लेना।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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