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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
४५१. साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने, कि इस उपाश्रय में गृहस्वामी यावत् नौकरानियाँ परस्पर एक दूसरे के शरीर को स्नान करने योग्य पानी से, कर्क से, लोध से, वर्णद्रव्य से, चूर्ण से, पद्म से मलती हैं, रगड़ती हैं, मैल उतारती हैं, उबटन करती हैं; वहाँ प्राज्ञ साधु का निकलना या प्रवेश करना उचित नहीं है और न ही वह स्थान वाचनादि स्वाध्याय के लिए उपयुक्त है। ऐसे उपाश्रय में साधु स्थानादि कार्य न करे। _ ४५२. वह भिक्षु या भिक्षुणी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने कि इस उपाश्रय - बस्ती में गृहस्वामी, गृहस्थ पत्नी, पुत्री, यावत् नौकरानियाँ परम्पर एक दूसरे के शरीर पर प्रासुक शीतल जल से या उष्ण जल से छींटे मारती हैं, धोती हैं, सींचती हैं, या स्नान कराती हैं, ऐसा स्थान प्राज्ञ के जाने-आने या स्वाध्याय के लिए उपयक्त नहीं है। इस प्रकार के उपाश्रय में साधु स्थानादि क्रिया न करे।
४५३. साधु या साध्वी ऐसे उपाश्रय को जाने, जिसकी बस्ती में गृहपति, उसकी पत्नी, पुत्रपुत्रियाँ यावत् नौकरानियाँ आदि नग्न खड़ी रहती हैं या नग्न बैठी रहती हैं, और नग्न होकर गुप्त रूप से मैथुन-धर्म विषयक परस्पर वार्तालाप करती हैं, अथवा किसी रहस्यमय अकार्य के सम्बन्ध में गुप्त-मंत्रणा करती हैं; तो वहाँ प्राज्ञ –साधु का निर्गमन-प्रवेश या वाचनादि स्वाध्याय करना उचित नहीं है। इस प्रकार के उपाश्रय में साधु कायोत्सर्गादि क्रिया न करे।
.४५४. वह साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने जो गृहस्थ स्त्री-पुरुषों आदि के चित्रों से सुसज्जित है, तो ऐसे उपाश्रय में प्राज्ञ साधु को निर्गमन-प्रबेश करना या वाचना आदि . पंचविध स्वाध्याय करना उचित नहीं है। इस प्रकार के उपाश्रय में साधु स्थानादि कार्य न करे।
विवेचन-निषिद्ध उपाश्रय-सूत्र ४४७ से ४५४ तक आठ सूत्रों में आठ प्रकार के उपाश्रयों के उपयोग का निषेध किया गया है -
(१) वह उपाश्रय, जो गृहस्थ, अग्नि और जल से युक्त हो।
(२) जिसमें प्रवेश के लिए गृहस्थ के घर के बीचोबीच होकर जाना पड़ता हो, या जो गृहस्थ के घर से बिलकुल लगा हो।
(३) जिस उपाश्रय-बस्ती में गृहस्थ तथा उससे सम्बन्धित पुरुष-स्त्रियाँ परस्पर एक दूसरे को कोसती, लड़तीं, उपद्रव आदि करती हों।
(४) जिस उपाश्रय-बस्ती में गृहस्थ-पुरुष-स्त्रियाँ एक दूसरे के तेल आदि की मालिश करती हों, चुपड़ती हों।
(५) जिस उपाश्रय-बस्ती में पुरुष-स्त्रियाँ एक दूसरे के शरीर पर लोध, चूर्ण, पद्म द्रव्य आदि मलती-रगड़ती, उबटन आदि करती हों।
(६) जिस उपाश्रय के पड़ोस में पुरुष-स्त्री परस्पर एक दूसरे को नहलाते-धुलाते हों। (७) जिस उपाश्रय के पड़ोस में पुरुष-स्त्रियाँ नंगी खड़ी-बैठी रहती हों, परस्पर मैथुन