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________________ १५४ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध निषिद्ध उपाश्रयाः ४४७. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा सागारियं सागणियं सउदय, जो पण्णस्स 'णिक्खमण-पवेसाए ? णो पण्णस्स वायण जाव चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा ३ तेज्जा । ४४८. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा गाहावतिकुलस्स मज्झमझेणं गंतु वत्थए पडिबद्धं वा णो पण्णस्स णिक्खमण जाव चिंताए, तहप्पगारे उवस्सएं णो ठाणं वा ३ चेतेा । Fe FAL - इह खलु गाहावती वा जाव णो पण्णस्स जाव * चिंताए । प ४४९. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेजाकम्मकरीओ वा अण्णमण्णं अक्कोसंति वा जाव उद्दवेंति वा, से एवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा । . से भिक्खू वा से ज्र्ज पुण उवस्सर्य जाणेज्जा इह खलु गाहावती वा जाव कम्मर्करीओ वा अण्णमण्णस्स गातं तेल्लेण वा घएण वा णवणीएस वा वसाए वा अब्भंगे ['गैं ] ति वा मक्खे [ क्खें ] ति वा, णो पण्णस्स जाव * चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा ३ चैतेजा । - * ११. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा अनलक प • इह खलु गाहावती वा जाव अण्णमण्णस्स गायं सिणाणेण वा कक्वेण वा लोद्धेण वा वण्णेण वा वा उमेण वा आघंसंति वा पघंसंति वा उव्वलेंति वा उव्वङ्गेति वा, णो पण्णस्स णिक्खमणपवेसे ' जाव णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा । ५ ४५२. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा • इह खलु माहावती वा जाब Berse २१. 'णो पण्णस्स' आदि पाठ की व्याख्या चूर्णिकार यों करते हैं पण्णों आधरिओ अहवा बिंदू जाणओ, तस्स पण्णस्स ण भवति निष्क्रमण-प्रवेश-संकट इत्यर्थः । वायण-पुच्छण-परियट्टणधम्माणुओगचिंताए सागारिए ण ताणि सकंति करेठं तम्हा अणादीणि णः कुज्जा ।" अर्थात् पण्ण का अर्थ है, आचार्य (प्रज्ञ) अथवा विद्वान्, ज्ञायक, उस प्राज्ञ का निष्क्रमण और प्रवेश उचित नहीं है। वाचना, पृच्छना, पर्यटना, धर्मानुयोगचिन्ता, आदि गृहस्थ परिवारयुक्त उपाश्रय में नहीं किए जा सकते, इसलिए स्थानादि कार्य वहाँ न करे। क २. पवेसाए के स्थान पर पविस्साए, पविसाए और पविसणाए पाठान्तर हैं। * इस चिह्न से जाव शब्द से निक्खमण से लेकर धम्माणुओगचिंताए तक का पाठ सूत्र ३४८ के अनुसार। ३. अक्कोसति के बाद जाव शब्द अक्कोसंति से लेकर उद्दवति तक के सारे पाठ का सूचक है, सूत्र ४२२ के अनुसार । ४. किसी-किसी प्रति में 'वसाए वा' पाठ नहीं है। ५. यहाँ जाव शब्द से 'पवेसे' से लेकर णो ठाणं वा तक का पूर्ण पाठ समझें।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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