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________________ द्वितीय अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र ४३६ १३७) वा जाणसालाओ वा सुधाकम्मंताणि' वा दब्भकम्मंताणि वा वब्भकम्मताणि वा वव्वकम्मंताणि वा इंगालकमंताणि वा कट्ठकम्मंताणि वा सुसाणकम्मंताणि वा गिरिकम्मंताणि वा कंदरकम्मंताणि वा संतिकम्मंताणि वा सेलोवट्ठाणकम्मंताणि वा भवणगिहाणि वा। जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा तेहिं ओवतमाणेहिं ओवतंति अयमाउसो! अभिक्कंतकिरिया या वि भवति। ४३६. इह खलु पाईणं वा जाव ५ ४ तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहिकिवण-वणीमए समुद्दिस्स तत्थ २ अगारीहिं अगाराइं चेतिताइं भवंति, तं जहा- आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा, जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा ६ जाव भवणगिहाणि वा तेहिं अणोवतमाणेहिं ओवयंति अयमाउसो! अणभिक्कंतकिरिया या वि भवति। वब्भा - वरत्ताजा गदीणं (गड्डीणं) दलज्जति। इंगाल कट्ठकम्मं एतेहिं सालातो भवंति । सुसाणे गिहाई। गिरि- जहा ख्याहणागिरिम्मि लेणमादी। कंदरा- गिरिगुहा । संति- संतीए घराई। सेल- पाहाणघराई। -उवट्ठाणगिह-जत्थ गावीओ उट्ठावित्तु दुब्भंति। सोभणं ति भवणं भा दीप्तौ। अर्थात् -आएसणाणिजहाँ क्षार पकाया जाता है, अग्नि बुझाई जाती है। अथवा लुहार की शालादि। आयतणं- पाखण्डियों के ठहरने का स्थान, जो मंदिर की दीवार के पास होते हैं। देवउलं- वाणव्यन्तर देव से रहित या सहित, प्रतिमा सहित देवालय। सभा- मंडप या छत्र वाणव्यन्तर देव सहित या रहित। पवा- प्रपा- प्याऊ, जहाँ पानी पिलाया जाता है, पणितगिहं - आपण (दूकान) दीवार सहित, पणियसाला- बिना दीवार की खुली दूकान, जाणगिह-रथादि रखने का स्थान। साला- रथ आदि का खुला स्थान बिना दीवार का। छुहा-खड़ी या मकान पोतने का चूना जहाँ पकाया जाता है। दब्भा-दर्भ जहाँ काटे या मोड़े जाते हैं, वव्वओ- घास की चटाइयाँ टोकरियाँ आदि जहाँ बनाई जाती हैं, दब्भा- (जहाँ चमड़े के बरत-रस्से आदि बनते हैं। इंगालकट्ठकम्म- कोयला तथा काष्ठकर्म बनाने की शालाएं, सुसाणे गिहाई- श्मशान में बने घर, गिरि- गिरिगह, जैसे खहणागिरि पर मकान बने हैं। कंदरापर्वत की गुफा में काट-छील कर बनाया हुआ घर, संति- शांति कर्म के लिए बनाए गए गृह, सेल- पाषाणगृह, उवट्ठाणगिह-जहाँ गायें आदि खड़ी करके दूही जाती हैं, उपस्थानगृह, भवणं शोभनगृह,- सुन्दर भवन।। १. 'सुधा' के बदले पाठान्तर है - 'छुहा' अर्थ समान है। २. वव्वकम्मंताणि के बदले पाठान्तर है- 'वक्ककम्मंताणि'। अर्थ होता है- वल्कल- छाल से चटाई, कपड़े आदि बनाने के कारखाने। ३. कहीं कहीं सुसाणकम्मंताणि के बदले 'सुसाणगिह' या 'सुसाणघरं' पाठान्तर है। अर्थात् श्मशान में बना हुआ घर। ४. 'ओवतंति' के बदले पाठान्तर है-उवयंति। ५. पाइणं वा के बाद '४' के अंक शेष तीन दिशाओं का सूचक है। 'आएसणाणि वा' से लेकर 'गिहाणि वा' तक का पाठ सू० ४३५ के अनुसार 'जाव' शब्द से सूचित किया है।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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