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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
मक्खेज वा सिणाणेव वा कक्केण वा लोद्धेण वा वण्णेण वा चुण्णेण वा पउमेण वा आघंसेज वा पघंसेज वा उव्वलेज वा उव्वट्टेज वा, सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पहोएज वा सिणावेज वा सिंचेज वा दारुणा वा दारुपरिणामं कट्ट अगणिकायं उजालेज वा पजालेज वा उजालेत्ता [पज्जालेत्ता?] कार्य आतावेज वा पयावेज वा।
अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पतिण्णा २ ४ जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेजा।
४२२. आयाणमेयं भिक्खुस्स सागारिए उवस्सए संवसमाणस्स। इह खलु गाहावती वा जाव कम्मकरी वा अण्णमण्णं अक्कोसंति वा वहंति वा संभंति वा उद्दवेंति वा। अह भिक्खू णं उच्चावयं ३ मणं णियच्छेजा- एते खलु अण्णमण्णं अक्कोसंतु वा, मा वा अक्कोसंतु, जाव मा वा उद्दवेंतु।
अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं ३ चेतेजा।
४२३. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावतीहिं सद्धिं संवसमाणस्स। इह खलु गाहावती अप्पणो सअट्टाए अगणिकाय ५ उज्जालेज वा पज्जालेज वा विज्झावेज वा। अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेजा-एते खलु अगणिकायं उजलेंतु वा मा वा, उज्जालेंतु, पज्जालेंतु १. 'दारुणा वा दारुपरिणामं कटु' की व्याख्या चूर्णिकार के शब्दों मे- 'परियट्टेति दारूं' अहवा
उत्तरा धरा संजोएत्ता अगणिं पाडित्ता उज्जालेत्ता पज्जालेता। ....... दारुण परिणामणं परियट्टणं अभिणवजणणं वा।' दारुणा- लकड़ी से, दारुपरिणाम - लकड़ी का घर्षण- पर्यावर्तन करके अथवा ऊपर नीचे की लकड़ियों को जोड़कर आग सुलगाकर उज्ज्वलित-प्रज्वलित करके। लकड़ियों का परिणामन
- परिवर्तन करना यानि बुझी हुई लकड़ियों की जगह नई लकड़ी जलाने के लिए रखना। २. 'पतिण्णा' के बाद '४' का अंक सू० ३५७ के अनुसार 'एस हेतु उस कारणे एस उवएसे' का सूचक है। ३. उच्चावयं का अर्थ चूर्णिकार ने किया है-अणेगप्पगारं- अनेक प्रकार का। ४. 'सअट्टाए' की व्याख्या वृत्तिकार के शब्दों में 'स्वार्थमग्निसमारम्भे क्रियमाणे' अपने प्रयोजन के लिए
अग्निसमारम्भ किये जाने पर। _ 'अगणिकायं उज्जालिज्जा' आदि पदों की व्याख्या चूर्णिकार के शब्दों में-अगणिकायं उज्जालिज्जा ससणिद्ध
एवं एत्थ उज्जालिज्जा। उज्जलंते चोरा सावयं वा ण एहि त्ति। अहवा सुठु विज्झवितो, मा एयं पेच्छितु तेणग एहिं ति । एवं कस्सइ उज्जोओ पि तो, कस्सति अंधगारो।' अर्थात्-'अगणि कायं उज्जालिज्जा' इस पाठ का तात्पर्य है कि कोई श्रद्धालु गृहस्थ स्नेहवश अग्नि को इसलिए उज्ज्वलित करता है कि अग्नि के प्रज्वलित होने पर चोर या श्वापद (सिंह आदि हिंस्र प्राणी) नहीं आएंगे। अथवा (आग को) अच्छी तरह बुझा दो, ताकि इसे (अन्धकार) देखकर चोर नहीं आएंगे, अत: किसी को प्रकाश प्रिय होता है, किसी को अन्धकार।