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[१४ ] की चर्चा वहाँ नहीं है। इससे एक बात यह ध्वनित होती है कि आचारचूला व निशीथ मूलत: एक ही कुशल मस्तिष्क की संयोजना है। स्थानांग, समवायांग में इसे आचारकल्प या 'आचार प्रकल्प' कहा है, जो आचारांग का सम्बन्ध सूचक है।
आचारांग की चार चूलाओं में प्रथम चूला सबसे विस्तृत है। इसमें सात अध्ययन हैं - नाम उद्देशक
विषय १. पिण्डैषणा
आहार शुद्धि का प्रतिपादन २. शय्यैषणा
संयम-साधना के अनुकूल स्थानशुद्धि ३. इयैषणा
गमनागमन का विवेक ४. भाषाजातैषणा
भाषा-शुद्धि का विवेक ५. वस्त्रैषणा
वस्त्रग्रहण सम्बन्धी विविध मर्यादाएं ६. पात्रैषणा
पात्र-ग्रहण सम्बन्धी विविध मर्यादाएं ७. अवग्रहैषणा
स्थान आदि की अनुमति लेने की विधि । इस प्रकार प्रथम चूला के ७ अध्ययन व २५ उद्देशक हैं। द्वितीय चूला के सात अध्ययन हैं, ये उद्देशक रहित हैं८. स्थान सप्तिका
-आवास योग्य स्थान का विवेक ९. निषीधिका सप्तिका
-स्वाध्याय एवं ध्यान योग्य स्थान-गवेषणा १०. उच्चार-प्रस्रवण सप्तिका -शरीर की दीर्घ शंका एवं लघुशंका निवारण का विवेक। ११. शब्द सप्तिका
-शब्दादिविषयों में राग-द्वेष रहित रहने का उपदेश । १२. रूप सप्तिका
-रूपादि विषय में राग-द्वेष रहित रहने का उपदेश । १३. परक्रिया सप्तिका
-दूसरों द्वारा की जाने वाली सेवा आदि क्रियाओं का निषेध । १४. अन्योन्यक्रिया सप्तिका -परस्पर की जाने वाली क्रियाओं में विवेक। तृतीया चूला का एक अध्ययन - भावना है।
१५. भावना-इसमें भगवान् महावीर के उदात्त चरित्र का संक्षेप में वर्णन है। आचार्यों के अनुसार प्रथम श्रुतस्कंध में वर्णित आचार का पालन किसने किया- इसी प्रश्न का उत्तररूप भगवचरित्र है। इसी अध्ययन में पांच महाव्रतों की २५ भावना का वर्णन भी है।
१६. विमुक्ति- चतुर्थ चूलिका में सिर्फ ग्यारह गाथाओं का एक अध्ययन है। इसमें विमुक्त वीतराग आत्मा का वर्णन है। आन्तरिक परिचय :
आचार चूला में वर्णित मुख्य विषयों की सूची यहाँ दी गई है। विस्तार से अध्ययन करने पर यह सिर्फ श्रमणाचार का एक आगम ही नहीं, किन्तु तत्कालीन जन-जीवन के रीति-रिवाज, मर्यादाएँ, स्थितियाँ, कला, राजनीति आदि की विरल झांकी भी इससे मिलती है।
बौद्धग्रन्थ 'विनयपिटक' तथा वैदिकधर्मग्रन्थ-'याज्ञवल्क्यस्मृति' आदि में भी इसी प्रकार के आचार विधान हैं, जो तत्कालीन गृहत्यागी-श्रमण-भिक्षु वर्ग के आचारपक्ष को स्पष्ट करते हैं । भिक्षु के वस्त्र-पात्र की मर्यादाएँ बौद्ध, वैदिक मर्यादाओं के साथ कितनी मिलती-जुलती हैं यह तीनों के तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है, हमने यथास्थान प्रकरणों में तुलनात्मक टिप्पण देकर इसे स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है।