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________________ [१३ ] आवश्यकचूर्णिकार तथा आचार्य हेमचन्द्र के मतानुसार आचारांग की तृतीय व चतुर्थ चूलिका यक्षा साध्वी महाविदेह क्षेत्र से लेकर आई। १ प्राचीन तथ्यों के अनुशीलन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि आचारचूला प्रथम श्रुतस्कंध का परिशिष्ट रूप विस्तार है। भले ही वह गणधरकृत हो, या स्थविरकृत, किन्तु उसकी प्रामाणिकता असंदिग्ध है। प्रथम श्रुतस्कंध के समान ही इसकी प्रामाणिकता सर्वत्र स्वीकार की गई है। विषयवस्तु : जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है. आचारांग का सम्पूर्ण विषय आचारधर्म से सम्बन्धित है। आचार में भी सिर्फ श्रमणाचार। प्रथम श्रुतस्कंध सूत्ररूप है, उसकी शैली अध्यात्मपरक है अतः मूलरूप में उसमें अहिंसा, समता, अनासक्ति, कषाय-विजय, धुत-श्रमण-आचार आदि विषयों का छोटे-छोटे वचन सूत्रों में सुन्दर व सारपूर्ण प्रवचन हुआ है। द्वितीय श्रुतस्कंध विवेचन/विस्तार शैली में है। इसमें श्रमण की आहार-शुद्धि, स्थान-गति-भाषा आदि के विवेक व आचारविधि की परिशुद्धि का विस्तार के साथ वर्णन है। आचार्यों का मत है कि प्रथम श्रुतस्कंध में सूत्ररूप निर्दिष्ट विषयों का विस्तार ही आचारचूला में हुआ है। आचार्यशीलांक आदि ने विस्तारपूर्वक सूत्रों का निर्देश भी किया है। २ ___आचारांग का यह द्वितीय श्रुतस्कंध पांच चूलिकाओं में विभक्त माना गया है। ३ इनमें से चार चूला आचारांग में हैं, किन्तु पांचवी चूला आचारांग से पृथक् कर दी गई है और वह 'निशीथसूत्र' के नाम से स्वतंत्र आगम मान ली गयी है। यद्यपि निशीथसूत्र में आचारांग वर्णित आचार में दोष लगने पर उसकी विशुद्धि के लिए प्रायश्चित्त विधान ही है, जो कि मूलतः उसी का अंग है, किन्तु किन्हीं कारणों से वह आज स्वतंत्र आगम है। अब आचारचूला में सिर्फ श्रमणाचार का विधि-निषेध पक्ष ही प्रतिपादित है, उसकी विशुद्धिरूप प्रायश्चित २. विस्तार के लिए देखिए प्रथम श्रुतस्कंध की प्रस्तावना - देवेन्द्र मुनि। ३. (क) नियुक्तिकार भद्रबाहु ने संक्षेप में नि!हण स्थल के अध्ययन व उद्देशक का संकेत किया है (नियुक्ति गाथा २८८ से २९१)। किन्तु चूर्णिकार व वृत्तिकार ने (वृत्तिपत्रांक ३१९-२०) सूत्रों का भी निर्देश किया है। जैसे : (ख) सव्वामगंधंपरिन्नाय ..... अदिस्समाणो कयविक्कएहिं - (अ. २ उ.५ सूत्र ८८) भिक्खू परक्कमेज वा चिट्ठज्ज वा ... (अ.८ उ. २ सूत्र २०४) आदि सूत्रों के विस्ताररूप में पिण्डैषणा के ११ उद्देशक तथा २,५,६,७ वां अध्ययन निर्मूढ़ हुआ है। (ग) से वत्थं पडिग्गह, कंबलं पायपुंछणं ....... (अ. २ उ. ५ सूत्र ८९) इस आधार पर वस्त्रैषणा, पात्रैषणा, अवग्रहप्रतिमा, शय्या अध्ययन आदि का विस्तार हुआ है। (घ) गामणुगामं दूइज्जमाणस्स दुजायं दुप्परिकंतं -अ.५ उ. ४ सूत्र १६२. इस आधार पर इर्याध्ययन का विस्तार किया गया है। (च) आइक्खइ विहेयइ किट्टेइ धम्मकामी ..... - अ. ६ उ. ५ सूत्र १९६. इस सूत्र के आधार पर भाषाध्ययन निर्मूढ़ हुआ है। (छ) महापरिज्ञा अध्ययन के सात उद्देशक से सप्तसप्तिका नियूंढ़ है। - अ.८ से १४. (ज) षष्ठ धूताध्ययन के २ व ४ उद्देशक से विमुक्ति (१६ वाँ) अध्ययन निर्दृढ़ है। (झ) प्रथम शस्त्रपरिज्ञाध्ययन से भावना अध्ययन निर्मूढ़ है। ४. हवइ य सपंचचूलो बहु-बहुतरओ पयग्गेणं - नियुक्ति ११
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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