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प्रथम अध्ययन : एकादश उद्देशक: सूत्र ४०९
पिहुयं वा जाव चाउलपलंबं वा सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा । चउत्था पिंडेसणा । [५] अहावरा पंचमा पिंडेसणा से भिक्खू वा २ जाव समाणे उवहितमेव १ भोयणजातं जाणेज्जा, तंजहा सरावंसि वा डिंडिमंसि वा कोसगंसि वा । अह पुणेवं जाणेज्जा बहुपरियावण्णे पाणीसु दगलेवे । तहप्पगारं असणं वा ४ सयं वा णं २ जाएजा जावरे पडिगाहेज्जा पंचमा पिंडेसणा ।
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[६] अहावरा छट्ठा पिंडेसणा ४ • से भिक्खू वा २ उग्गहियमेव भोयणजायं चट्ठाए उग्गहितं जं च परट्ठाए उग्गहितं तं पादपरियावण्णं तं पाणिपरियावण्णं फासु जाव पडिगाहेज्जा । छट्ठा पिंडेसणा ।
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[ ७ ] अहावरा सत्तमा पिंडसेणा • से भिक्खू वा २ जाव समाणे बहुउज्झितधम्मियं भोयणजायं जाणेज्जा जं चऽण्णे बहवे दुपय- चउप्पय- समण - माहण - अतिहि-किवणवणीमगा णावकंखंति तहप्पगारं उज्झितधम्मियं भोयणजायं सयं व णं जाएजा परो वा से देना जाव पडिगाहेज्जा। सत्तमा पिंडेसणा। इच्चेयाओ सत्त पिंडेसणाओ ।
[८] अहावराओ सत्त पाणेसणाओ । तत्थ खलु इमा पढमा पाणेसणा असंसट्टे हत्थे असंसट्टे मत्ते । तं चेव भाणियव्वं, णवरं चउत्थाए णाणत्तं, से भिक्खू वा २ जाव समासे ज्जं पुण पाणगजातं जाणेज्जा, तंजहा तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवोदगं वा आयामं वा सोवीरं वा सुद्धवियडं वा, अस्सि खलु पडिग्गाहितंसि अप्पे पच्छाकम्मे, तहेव जाव पडिगाहेज्जा ।
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जातेज्जा, जाणेज्जा, अर्थ है याचना करे, जाने ।
४१०. इच्चेतासिं सत्तण्हं पिंडेसणाणं सत्तण्हं पाणेसणाणं अण्णतरं पडिमं १. उवहितमेव के स्थान पर चूर्णिकार ने उवगहितं पाठान्तर मानकर व्याख्या की है. • उवगहियं भुंजमाणस्स अट्टाए उवणीतं । अर्थात् उपगृहिता नामक पिण्डैषणा में उपगृहीत का अर्थ है भोजन करने वाला अपने लिए थाली आदि में भोजन परोसकर लाया है। २. इसके स्थान पर पाठान्तर है ३. यहाँ जाव शब्द से सू० ३२४ के अनुसार फासुयं से लकर 'पडिगाहेज्जा' तक का पाठ समझें । ४. छठी पिण्डैषणा का भावार्थ चूर्णिकार के शब्दों में छट्ठा उग्गहिता पग्गहिता, उग्गहितं दव्वं हत्थ गतं, पग्गहितं दाहिण - हत्थगतं दिज्जमाणं एलुगविक्खंभमेतं, जस्स वि अट्ठाए उग्गहियं पग्गहियं सोवितं नेच्छति, पादपरियावन्नं कंसभाय (णे) णत्थि दगलेवो पाणीसु नत्थि दगलेवो देंतस्स नियत्तो भावो छट्ठी' अर्थात् छठी पिण्डैषणा उद्गृहीता प्रगृहीता है। उद्गृहीत किया है। प्रगृहीत दाहिने हाथ में लिया गया द्रव्य, दाता और आदाता के बीच में देहली के द्वार तक का अन्तर है । जिसके लिए वह भोज्यद्रव्य हस्तगत किया और दायें हाथ में लिया गया है, वह भी उसे नहीं चाहता, कांसी का बर्तन कच्चे पानी से लिप्त नहीं है और न हाथ कच्चे पानी से लिप्त है, जिनको देना था, दिया जा चुका है। यह है
द्रव्य हस्तगत
छठी पिण्डैषणा ।
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