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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
गई हो, किन्तु यह सब यथातथ्य न बतलाकर बनावटी बातें बनाता है तो ये सब संसार-परिवृद्धिकारक दोषों के आयतन (स्थान ) हैं। १ सप्त पिंडैषणा-पानैषणा
४०९. अह भिक्खू जाणेजा सत्त पिंडेसणाओ सत्त पाणेसणाओ। [१] तत्थ खलु इमा पढमा पिंडेसणा- असंसढे हत्थे असंसढे मत्ते।
तहप्पगारेण असंसटेण हत्थेण वा मत्तएण वा असणं वा ४ सयं वा णं जाएजा परो वा से देज्जा, फासुयं पडिगाहेज्जा-पढमा पिंडेसणा।
[२] अहावरा दोच्चा पिंडेसणा-संसटे हत्थे संसट्टे मत्ते, तहेव दोच्चा पिंडेसणा।
[३] अहावरा तच्चा पिंडेसणा- इह खलु पाईणं वा २४ संतेगतिया सड्ढा भवंति गाहावती वा जाव कम्मकरी वा। तेसिं च णं अण्णतरेसु विरूवरूवेसु भायणजातेसु उवणिक्खित्तपुव्वे सिया, तं जहा- थालंसि वा पिढरगंसिवा सरगंसि वा परगंसिवा वरगंसि वा। अह पुणेवं जाणेजा असंसढे हत्थे संसटे मत्ते, संसढे वा हत्थे असंसटे मत्ते। से य पडिग्गहधारी सिया पाणिपडिग्गहए वा, से पुव्वामेव आलोएजा-आउसो ति वा भगिणी ति वा एतेण तुमं असंसटेण हत्थेण संसटेण मत्तेण संसटेण वा हत्थेण असंसटेण मत्तेण अस्सि पडिग्गहगंसि वा पाणिंसि वा णिहट्ट ओवित्तु दलयाहि। तहप्पगारं भोयणजातं सयं वा जाएजा परो वा से देजा। फासुयं एसणिजं जाव लाभे संते पडिगाहेजा। तच्चा पिंडेसणा। __ [४] अहावरा चउत्था पिंडेसणा से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणेजा पिहुयं वा जाव चाउलपलंबं वा, अस्सि खलु पडिग्गाहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे अप्पे पजवजाते। तहप्पगारं
१. आचारांग चूर्णि - "कादाइ वाघातेण ण णेज्जा वितं भत्तपाणं गिलाण, अत्यंतो सूरी, गोणा अस्सा वा मारणगा, खंधावारो हत्थी मत्तो, सूलं वा होज्जा। इच्चेयाई आयतणाई - आयतणा दोषाई अप्पसत्थाई संसारस्स ...."
-आचा० मूलपाठ टिप्पण पृष्ठ १४२ २. 'पाईणं वा' के बाद ४ का अंक सूत्र ३८० के अनुसार शेष तीनों दिशाओं का सूचक है। ३. पिढरगंसि के स्थान पर पाठान्तर है-पिढरंसि।-चूर्णिकार ने इन पदों का अर्थ इस प्रकार किया है
- "पिहडए वा अन्नंमि छूडं। सरगं वंसमयं पच्छिगादिपिडिया छब्बगपलगं वा। वरगंसि वा, ध (व?) रा भूमी,जहा वरं हंतीति वराहं उत्किरतीत्यर्थः,तं अलिंदिगा वा कुडगं वा। परब्भं मणिमयमदि।' अर्थात् –पिठर (तपेली) पर जो कि अन्न में रखी हुई है,सरक- बाँस की पिटारी, छबड़ी या टोकरी, वरगंसि - वरा- भूमि, को उखाड़ता है, वह है वराह । वराह (सुअर) के लिए धान्य रखने का पात्र विशेष या
कुँडा। परब्भं-मणिमय बहुमूल्य पात्र, भाजन। ४. यहाँ जाव शब्द से सू० ३२६ के अनुसार पिहुयं से लेकर चाउलपलंबं तक का पाठ समझें।